आलेख
राधेलाल बिजघावने
किसी भी लेखक की रचनात्मकता की गरिमा उसके निरपेक्ष और गंभीर लेखन से होती है। उससे उसकी सोच, समझ और अनुभवगत यथार्थ का विस्तार होता है। लेखक के पास उसकी संवेदनाएं, भाषा शिल्प का उच्च स्तरीय संज्ञान ही लेखक की रचनात्मकता को गौरव मंडित करता है। इसके साथ ही उसका परिवेशभाषा के साथ उसके संघर्ष जुड़े होते हैं, जिसमें दुख पीड़ा तनाव आर्थिक अभाव के दुखद ताने बाने बुने होते हैं। जहां से गुजरते हुए लेखक, लेखकीय ऊर्जा ग्रहण कर अपने लेखकीय अनुभवों को मांजते-धोते हुए उनमें गुणात्मक सुधार निरंतर करता ही रहता है। लेखक की आंखें कैमरे की तरह खुली होती हैं जो सामाजिक सांस्कृतिक चरित्र के ग्राफ की फोटो कापी करती हैं और उसके आचरण की वास्तविक लिपि को गंभीरता से अध्ययन कर एक सकारात्मक, नकारात्मक निर्णय की ओर अग्रसर होती है। सकारात्मक अथवा नकारात्मक निर्णय की ओर जो उसे ग्लोबल दृष्टि सृष्टि प्रदान करता है।
लेखक उसकी रचनात्मक ऊर्जा आदि से बड़ा या छोटा होता है। रचनात्मक शक्ति सामर्थ्य से ही उसकी रचना लेखक से या तो बड़ी होती है या फिर रचनाकाररचना से छोटा होता है तो उसकी रचना प्रभावी रचनाशीलता के स्तर को हासिल करने में असमर्थ होती है। इस कारण रचनाकार का कद छोटा या फिर बौना ही रह जाता है
इधर जब कमल किशोर गोयनका के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विचार करने पर कई बार लगता है कि कमलकिशोर गोयनका से उनका लेखकीय व्यक्तित्व कहीं बड़ा है जो उन्हें प्रथम श्रेणी के लेखक की पंक्ति में खड़ा कर देता है।
जहां तक लेखकीय व्यक्तित्व का सवाल है, बड़े लेखक का व्यक्तित्व, स्वतः बड़ा और गंभीर तथा शालीन होता ही है। उसमें अहं अनुपस्थिति होता चला जाता है इसका अहसास मुझे उस समय हुआ जब कथा लेखिका सूर्यबाला ने मेरी कविता 'प्रेरणा' में पढ़ी तो वे अभिभूत हो गईं और काफी देर तक इस कविता पर चर्चा कर मुझे बधाई देती रहीं। यही इनका बड़प्पन है।(जो उन्हें बड़ी लेखिका बनाये हुए है)।
इसी तरह चित्रा मुदगल ने 'प्रेरणा' के प्रेमशंकर रघुवंशी पर केंद्रित स्मृति विशेषांक में "अनुपस्थिति में उपस्थिति का अहसास" मेरा लेख पढ़ा तो वे भी अभिभूत हो गई और लेख की प्रशंसा फोन पर लंबे समय करती हुई कहने लगी कि "आप तो बहुत बड़े लेखक और आलोचक हैं और मैं तो सिर्फ पाठक हूं। जबकि चित्रा मुद्गल प्रथम पंक्ति की कथा लेखिका हैं तथा कई संस्थानों की सदस्य भी। पूरे देश में उनके कहानी लेखन का लोहा सभी मानते हैं। सारिका में संपादक भी रही हैं। यह इनका बड़प्पन ही है जबकि मैं छोटा सा लेखक हूं या नहीं भी। जब 'कथा मध्यप्रदेश' का कार्यक्रम भारत भवन में संतोष चौबे जी ने कराया था। इस कार्यक्रम में चित्रा मुदगल भी आई थीं। मैं इनसे संवाद करना चाहता था। परंतु मेरी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि इतनी बड़ी कथा लेखिका मुझ जैसे-छोटे लेखक को पहचानती भी हैं कि नहींइसलिए इनसे संवाद नहीं किया।
__ जहां तक कमलकिशोर गोयनका के लेखकीय व्यक्तित्व का प्रश्न है, मैंने भोपाल में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में इन्हें पहली बार देखा था मेरे साथ प्रेरणा के प्रधान संपादक अरुण तिवारी भी थे। हिंदी विश्व सम्मेलन के आयोजन का दायित्व इन्हें ही सौंपा गया था। अरुण तिवारी ने मेरा परिचय कमल किशोर गोयनका से कराया तो वे अत्यंत व्यस्त होकर भी खड़े हो गये और मुझसे आदर एवं आत्मीयता के साथ मिले, मुझे लगा, बड़ा लेखक बड़ा ही होता है, वह छोटे लेखक से कितने प्यार के साथ आत्मीयता से मिलता है। जो उनके बड़प्पन के कद को और बढ़ाकर गौरव मंडित करता है । गोयनका में यह शिष्टता विशिष्टता है। कमल किशोर गोयनका निश्चित ही एक जीनियस और क्लासिकल लेखक हैं जिसकी वजह से उन्होंने लेखकीय गरिमा स्वतः हासिल की है।
कमलकिशोर गोयनका की काव्य सृष्टि दृष्टि भी अलग कलात्मक शिल्प की बारीकी के साथ उपस्थित होती है इसलिए इनकी कविताओं का पहला पैराग्राफ पढ़ते ही, इनकी रचात्मकता की पहचान सुस्पष्ट हो जाती है। काव्य लेखन में इनके अध्ययन, मनन एवं अनुभवशीलता स्वतः स्फूर्त होकर प्रतिबिंबित होती है। आलोचना दृष्टि के साथ ही इनकी काव्य दृष्टि-सृष्टि का सुगम संयोग होने से इनकी कविताएं अपने वक्त की तमाम विसंगतियों का संशलेषण एवं विश्लेषण करती हैं जिसमें कोई पूर्वग्रह नहीं होता इसलिए इनका काव्य संवेदन प्रीतिकर लगता है जो समय सूचक एवं समय बोधक भी है तथा बुरे वक्त का अच्छा साथी और भविष्य की संभावित दुर्घटनाओं से सावधान होने का सूचक यंत्र भी।
कमल किशोर गोयनका ने प्रेमचंद की कहानियों में उनके कथा पात्रों के चरित्र को जितने यथार्थ रूप से प्रस्तुत किया है उतनी ही गहराई से प्रेमचंद के उपन्यासों एवं कहानियों में 'गांधीयन थेयरी आफ इकानामिक्स' जो मिनिमाइजेशन आफ वान्ट्स पर आधारित है, का गहराई से विश्लेषण किया है। इसके साथ ही समाज का राष्ट्रीय उत्पादन के माध्यम से आर्थिक सुधार की गुणात्मकता को प्रधानता दी हैगोयनका समाज शास्त्री निगाह से सामाजिक संरचना की विषय वस्तु को ईमानदारी से स्वीकारते हैं।
कमलकिशोर गोयनका वर्तमान में केंद्र शासन में राज्य मंत्री के समकक्ष हैं। परंतु उसका प्रभावी दबाव और तबका इनमें नहीं है। ये सहज, मृदुल, मिलनसार व्यक्ति हैं। इनके भीतर का साहित्यकार भी इन्हें अत्यंत सहिष्णु बनाये हुए है। इसी वजह समकालीन हिंदी साहित्य में गोयनकाजी की साहित्यिक छवि प्रभावी और सहज एवं प्रीतिकर लेखक के रूप में उभरकर सामने आती है जो इनके साहित्य में भी रिफ्लैक्ट होती है।
कमल किशोर गोयनका की रचनाएं वर्तमान समय के सामान्य मध्यम दर्जे के लोगों के जीवन को रूपायित करती है। इनकी रचनाओं में स्वार्थ उत्प्रेरित जिज्ञासा एवं उत्स नहीं है। इनकी रचनाएं समस्यासूचक हैं तथा जातिगत, भाषा गत, क्षेत्रगत स्वलाभ से उत्प्रेरित नहीं होकर राजनैतिक समीकरण को सुलझाने वाली होती हैं इसलिए समाज के शांति मय भविष्य की तलाश में रहती हैं इसलिए परिवर्तनोन्मुखता और सर्वकालिकता की सांसारिकता इनमें मौजूद हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आधुनिक जीवन, रोजमर्रा के उत्पन्न होते द्वंद्वों की जीवटता और जैविकता को इनकी रचनाएं समूल उखाड़ती हैं तथा मानसिक नवचिंतन और चेतना के धुले कपड़े सबको पहनाने की पहल करती हैं इसलिए इनका सांस्कृतिक बोध जनपदीय एवं जनतांत्रिक मूल्यों का है।
कमल किशोर गोयनका संबंधहीनता की फसली गांठों को चुपचाप खोलते हैं तथा समग्र सामाजिक मनः स्थितियों को उत्प्रेरित करती हुई उसकी स्वायत्तता को मजबूत आधार देते हैं। वे मानते हैं कि सतकर्म से मनुष्य बड़ा होता है। यही मानवीय जीवन को संवेदनात्मक अवदान प्रदान करता है तथा अस्मिता को खंडित होने से बचाते हुए मनुष्य और मनुष्य के बीच बढ़ते मतभेदों की लकीर को मिटाता है। मनुष्यों के बीच बढ़ते मौन को समाप्त करते हुए संवादात्मक संबंध स्थापित करते हैं इसलिए गोयनका की रचनाओं में अपने समय की विसंगतियों के प्रतिरोध करने की ताकत है ताकि राजनैतिक द्वंद्वात्मकता की स्थितियों से सीधा संपर्क किया जा सके।
कमल किशोर गोयनका बयानबाजी में भरोसा नहीं करते। ये विशाल मानवीय सहजीवन एवं सहअस्तित्व की अपेक्षा और और आकांक्षा करते हैं। इसके साथ ही मनुष्य की खंडित होती अस्मिता के विरुद्ध लंबा जिहाद करते हैं तथा खंडित सत्य को पुर्नसंगठित कर वंचितों को एकत्रित करते हैं और टकराव की स्थितियों से सबको बचाते हैं इसलिए ये कामचलाऊ दुर्घटनाक्रमों से बचे रहते हैं।
कमल किशोर गोयनका का रचनात्मक बिल्टअप इतना सौंदर्यबोधी है कि किस लेखक के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर ध्यान केंद्रित करते हैं, उसकी पूरी रचनात्मक मीमान्सा करते हैं और उसके खूबियों, खासियतों को पूरी ईमानदारी के साथ प्रस्तुत करते हैं इसके साथ उनकी निगाह में यदि कोई खामी नजर आती है तो उसे भी शालीन भाषा में प्रस्तुत कर एक नई गाईड लाइन देते हैं।
प्रेमचंद के कथा, उपन्यास, लेखन, उनके नारी पात्रों, छोटे तबके के लोगों की आर्थिक तंगी, तनावों, अतिवाद को इतनी बारीकी के साथ प्रस्तुत किया है कि उसका कोई सानी नहीं। यह कहा जा सकता है कि प्रेमचंद के कथा कहानी उपन्यास लेखक के सृष्टा-दृष्टा के रूप में विशेषज्ञता हासिल है।