हालात पर पैनी नजर रखती है आज की गजल

आलेख


अशोक 'अंजुम'


'गजल' आज हिंदी कविता की एक बहुश्रुत, बहुपठित विधा बन चली है इसमें दो राय नहीं। गजल क्या, साहित्य की कोई भी विधा उस स्थिति में अधिक लोगों तक पहुंचती है जब पाठक व श्रोताओं को यह लगे कि इस रचना में तो उसके अपने ही जीवन की छवि है। इसमें तो उसके अपने सुख-दुख पिरोये गये हैं। वह रचना जो लोगों के घाव पर मरहम लगाये और अंधेरे में दीपक का कार्य करें। जीवन-व्यापार के विभिन्न क्षणों में जिसे उदाहरण की तरह प्रस्तुत किया जा सके। वह रचना जो जीवन की तपती दोपहरी में अचानक छा जाने वाले बादल के सदृश दिखाई देकबीर, तुलसी, रहीम, गालिब आदि आज इसी गुण के कारण जीवित हैं। हिंदी गजल ने भी इन गुणों को अपनाया। इसने सुन्दरी की देहयष्टि पर लफ्जों की कची चलाना धीरे-धीरे कम किया और आम आदमी के सुख-दुख को अपना कण्ठहार बनाने में इसका विशेष रूप से रुझान दिखाई देने लगा। जैसा कि गजल प्रेमी जानते ही हैं कि 70 के दशक में इस क्षेत्र में दुष्यंत कुमार का आगमन एक चमत्कार की तरह हुआ। दुष्यंत कुमार ने सर्वहारा वर्ग की चिंताओं को अपनी गजलों के शेरों में पिरोया और भविष्य के गजलकारों के लिए उदाहरण बन गये। यूं तो दुष्यंत कुमार के पूर्व से ही हिंदी में गजल की शुरुआत हो चली थी किंतु दुष्यंत कुमार ने गजल को नया मुहावरा दिया तथा भाषा और भाव के स्तर पर उसे आम आदमी के अधिक नजदीक लेकर आये और इसकी वजह से हिंदी कविता जगत में एक हलचल-सी मच गयी। उन्होंने कहा -


कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिए


कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए


न हो कमीज तो पांवों से पेट ढक लेंगे


ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए


इसके बाद तो गजल में सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक, सांस्कतिक आदि विषय प्रमखता से अपनी पैठ बनाते चले गए। और ये सारे विषय आमआदमी के इर्द-गिर्द ही परिक्रमा लगाते हुए नजर आने लगे। नीरजजी जैसे स्थापित गीतकारों को भी गजल के आकर्षण ने अपने पाश में ले लिया और वे कहने लगे


वो और ही थे जिन्हें थी खबर सितारों की


मेरा ये देश तो रोटी की ही खबर में रहा


रामावतार त्यागी की गजलों में आम आदमी को लेकर जो तल्खी है वो कहीं अधिक तेज है


चेहरे पढ़े हैं गौर से हर खासो-आम के


लिक्खा है हम गुलाम हैं, वह भी गुलाम के


थोड़ी-सी पी चुके हैं, थोड़ी-सी और दो


चर्चे करेंगे बैठकर हम तब अवाम के


यूं तो स्व. बलबीर सिंह रंग ने दुष्यंत कुमार से पहले हिंदी गजल को अपनी अभिव्यक्ति दी किन्तु आपकी गजलों का तेवर इतना तीखा नहीं रहा। श्रीरंग जी की गजलों में पारम्पिकता का रंग अधिक दिखाई देता है।


____ आज हिंदी गजलकारों की एक समृद्ध सूची हमारे सामने है। आज गजल में हमें व्यवस्था से अंसतुष्टि, विसंगतियों पर प्रहार,व्यंग्य, राजनैतिक छल-कपट, दोहरे चरित्र, तमाम सामाजिक समस्याएं, रिश्ते-नाते, पारिवारिक परिदृश्य आदि आम आदमी से जडे विभिन्न चित्र दिखाई देते हैं। आज तमाम ऊर्जस्वी गजलकार अपने परिवेश के प्रति सचेत हैं और अपने अशआरों में उसकी सफल अभिव्यक्ति कर रहे हैं। डॉ. कुंवर बेचैन जब भूख और रोटी की बात करते हैं तब उसकी अपनी ही रंगतअलग ही खुशबू होती है-


हजारों खुशबुएं दुनिया में हैं पर उससे कमतर हैं


जो भूखे को किसी सिकती हुई रोटी से आती है


आज का गजलकार अपने परिवेश के प्रति चिन्तित ही नहीं है वरन् अपने अशआरों में अपने जमीन से जुड़े होने की बात का जोरदार पक्षधर भी है, उदयभानु 'हंस' कहते हैं-


जन्म लेती नहीं आकाश में कविता मेरी


फूट पड़ती है स्वयं धरती से कोंपल की तरह


'रहमत अली' को रदीफ की तरह प्रयोग करके सशक्त गजलकार शिवओम 'अम्बर' आज के आम आदमी की तस्वीर कुछ यूं गढ़ते हैं


आप खुद अपने अहद का हाल है रहमत अली


बाढ़, सूखा, भुखमरी, भूचाल है रहमत अली


मुल्क-भर के पोस्टरों पे मुस्कराता है मगर


आइने के सामने बेहाल है रहमत अली


दष्यंत जैसे तेवर के साथ गजल को सजाने-संवारने वाले गजलकारों में एक महत्वपूर्ण नाम अदम गोंडवी का भी है। आप कहते हैं


न महलों की बुलंदी से न लफ्जों के नगीने से


बाढ़, सूखा, भुखमरी, भूचाल है रहमत अली


मुल्क-भर के पोस्टरों पे मुस्कराता है मगर


आइने के सामने बेहाल है रहमत अली


दष्यंत जैसे तेवर के साथ गजल को सजाने-संवारने वाले गजलकारों में एक महत्वपूर्ण नाम अदम गोंडवी का भी है। आप कहते हैं


न महलों की बुलंदी से न लफ्जों के नगीने से


तमहुन में निखार आता है घीसू के पसीने से


अब मर्कज में रोटी है, मुहब्बत हासिए पर है


उतर आई गजल इस दौर में कोठी के जीने से


साथ ही


भूख के अहसास को शेरो-सुखन तक ले चलो


या अदब को मुफलिसों की अंजुमन तक ले चलो


आज की व्यवस्था और रहनुमाओं पर तीक्ष्ण प्रहार करते हुए चर्चित गजलकार डॉ. उर्मिलेश गरीबों की नियति को कुछ यूं लफ्ज देते हैं


वो शख्स ही कमीज उतारेगा इनकी कल


कंबल जो दे रहा है गरीबों को दान में


अथवा-


अल्सर के रोगियों को दवाएं बुखार की


क्या खूब! क्या इलाज है आंखों के सामने


जी हां, आज बहुत कुछ ऐसा-वैसा हो रहा है हमारी आंखों के सामने और आज का गजलकार इस सबके प्रति सचेत है। डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल भी गजल के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, वे आदमी को अपनी गजल के आइने में कुछ यूं देखते हैं-


आदमी मजबूर है, दुख-दर्द का मारा भी है


और यह जीवन उसे हर हाल में प्यारा भी है


दुख-दर्दी से जूझते हुए जीवन को प्यार करना वाकई जिंदादिली है। लेकिन इन दुख-दर्दो व आपाधापी के बीच हम संवेदन शून्य भी होते चले जा रहे हैं, जैसे वक्त की साजिशों ने हमें तमाशाई बना के छोड़ दिया है, और यह निश्चित ही बहुत भयावह स्थिति है। चर्चित गजलकार/दोहाकार हरेराम समीप के शब्दों में-


शहर के चौक पे' घायल पड़ा हुआ है समीप


निकल गए हैं फकत डालकर नजर कितने


'बहुत प्यासा है पानी' गजल-कृति से गजल के क्षेत्र में अपनी पुख्ता पहचान बनाने वाले चर्चित हास्य-व्यंग्य कवि प्रदीप चौबे की गजलों में व्यंग्य और परिवेश की जुगलबंदी देखते ही बनती है


हर तरफ गोलमाल है साहब


आपका क्या ख्याल है साहब


रिश्वतें खाके जी रहे हैं लोग


रोटियों का अकाल है साहब


राजनेताओं द्वारा बस्ती को दिये जाने वाले आश्वासन जब खोखले निकलते हैं तब कमलेश भट्ट कमल जैसे समर्थ गजलकार भला कैसे चुप रह सकते हैं


बादलों के वायदे हर रोज बारिश के


बूंद के लाले मगर हर बार बस्ती में


छोटी बहू के बड़े शायर विज्ञान व्रत के लफ्जों में आम आदमी की व्यथा-


बरसों खुद से रोज ठनी


तब जाकर कुछ बात बनी


इतने दिन बीमार रहा


ऊपर से तनखा कटनी


एक और समर्थ गजलकार श्री लक्ष्मण कहते हैं-


गम अगर कुछ कह न पाए आदमी


एक-दो आंसू बहाए आदमी


रोज पाने के लिए कोई खुशी


घर से कितना दूर जाए आदमी


चर्चित गजलकार और गजल की समीक्षा के क्षेत्र में गंभीर काम करके अपनी पुख्ता पहचान बनाने वाले श्री अनिरुद्ध सिन्हा की आज के आदमी को लेकर चिन्ता कुछ इस प्रकार है-


आज फिर संदर्भ से टूटा हुआ


हाशिये पर चीखता है आदमी।


आज के वातावरण पर बड़ी बारीक नजर रख कर तीखे शेर कहने वाले गजलकार श्री अशोक रावत भी हैं-


पुलिस लगी है कक्षाओं के भीतर भी और बाहर भी


बंदूकों की जद में हैं अब स्कूलों के परिसर भी


समझ नहीं पाता हूं किसके सपनों का ये भारत है


जिसकी संसद में जा पहुंचे कातिल भी औ' तस्कर भी


आज रोज छोटी-छोटी बच्चियों से होते दुष्कर्मों के समाचार हम अखबारों में देखते हैं। ऐसे वातावरण का वहशियानापन भी आज के गजलकार से कहां छिपता है-


श्री गुलशन मदान के अनुसार


फिर कोई होने को है क्या वहशियाना हादसा


इस तरह छाई हुई है खामुशी हर मोड़ पर


सियासतदां की मनः स्थिति को बयान करते हुए हिन्दी के वरिष्ठ गीतकारगजलकार श्री चन्द्रसेन विराट कहते हैं


यहां सामान्यजन जो है चतुर वह हो नहीं जाए


सियासत चाहती है ये, उसे मतिमंद रहने दो


और श्री हस्तीमल 'हस्ती' की कहन का नजारा भी काबिले-गौर है-


ये मुंह ये कौर बीच में कितने बिचौलिये


बेहाल किस तरह न हो ये पेट बोलिये


श्री कृष्ण कुमार प्रजापति आज की गजल के गंभीर गजलकार हैं, आज वातावरण शेरों का जामा पहनाते हुए कहते हैं


गम मिला मुझको खुशी के शहर में


लुट गया मैं रोशनी के शहर में


भूख के मारे भिखारी मर गये


हमने ये देखा धनी के शहर में


इन पंक्तियों के लेखक अशोक 'अंजुम' ने भी आज के हालात के मद्देनजर कुछ कहने का प्रयास किया है


ऊपर वाले बड़े मजे से खींच रहे हैं माल मियां


लेकिन हमको नहीं मयस्सर हर-दिन रोटी-दाल मियां


होरी औ' धनिया की किस्मत लो अब बदली, तब बदली


आजादी के बाद से नेता बजा रहे हैं गाल मियां


उपरोक्त उदाहरणों को आज के परिवेश पर गजल की नजर की बानगी भर ही कहा जा सकता है अन्यथा बालस्वरूप राही, मुनव्वर राना, राहत इन्दौरी, राजेश रेड्डीडॉ. शेरजंग गर्ग, मोहदत्त साथी, अश्वघोष, अशोक मिजाज, विनोद तिवारी, चाँद शेरी, आचार्य भगवत दुबे, सूर्यभानु गुप्त, रामकुमार कृषक, कमल किशोर भावुकरामगोपाल भारतीय, महेन्द्र जैन, रमेश प्रसून, श्याम सखा श्याम, ओंकार गुलशनआचार्य सारथी, भानुमित्र, अल्हड़ बीकानेरी, रमासिंह, राजगोपाल सिंह, सुरेन्द्र चतुर्वेदीज्ञानप्रकाश विवेक, डॉ.रोहिताश्व अस्थाना, रामसनेहीलाल शर्मा यायावर, जहीर कुरेशीअंसार कम्बरी, चन्द्रभाल सुकुमार, हरीलाल मिलन, राजकुमार चंदन, दिनेश सिन्दलदीक्षित दनकौरी, डॉ.अनन्त राम मिश्र 'अनन्त', सुल्तान अहमद, पुरुषोत्तम यकीनसुरेश कुमार, राजेन्द्र तिवारी, अखिलेश तिवारी, मनोज अबोध, संतोष जैन, द्विजेन्द्र द्विज, डॉ.महेन्द्र अग्रवाल, मधुर नज्मी, नरेन्द्र गरल, डॉ.अनूप वशिष्ठ, आचार्य सारथीशरद सिंह, वर्षा सिंह, कीर्ति काले, शशि जोशी, आलोक श्रीवास्तव, योगेन्द्र मोद्गिलसत्यप्रकाश शर्मा आदि हिन्दी गजल के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय कई सौ ऐसे सशक्त हस्ताक्षर हैं जो अपने परिवेश के प्रति पूर्णतया सचेत हैं।