विलक्षण प्रतिभा के धनी, फिल्मी दुनिया की मशहूर हस्ती :नक्श लायलपुरी

फिल्म


सविता बजाज


जिस तरह बम्बई के समुद्र की गहराई अथाह है। उसी। भांति यहां के कला जगत की भी कोई सीमा नहीं। हर क्षेत्र अपने अपने फन के रंगों में रंगा है। सिनेमा, डांस, लेखन, पेंटिंग, संगीत, मेकअप, वेशभूषा, सबका संसार अथाह गहराई समेटे है। सौ साल से ऊपर हो गये फिल्म संसार को रचे बसे, भरपूर सांस लेते हुए। ब्लैक-वाईट का जमाना चला गया और कलर छा गया। स्टूडियो बिकने लगे, बिल्डिंग खड़ी होने लगी। लाखों के बदले करोड़ों की गिनती होने लगी और ऐसे में नई पौध का पदार्पण हुआ फिल्म संसार में मधुमक्खियों के जाले की तरह। हर क्षेत्र में नये खूबसूरत माड चेहरे मंडराने लगे। हर कोई अपने आपको कलाकार कहने लगा न कि टैक्नीशियन । गली मोहलों में बस गाने बजने लगे फूहड़, बेहूदा जिनकी न तो धुन समझ आती है और न ही बोल । मैं सब गानों की बात नहीं कर रही आप बेसुरा गा रहे हैं तो नो टेंशन मशीन सुर ठीक कर देगी।


युग बदला, लोग बदले, इक्कीसवीं सदी आ गई लेकिन एक फिल्मी हस्ती जिन्होंने न जाने कब से उम्र के अस्सी पार कर लिए आज भी बड़ी शान से, गरिमा लिए अदब से फिल्मी दुनिया में अपनी लेखनी से राज कर रहा है। इस महान लेखक का नाम है नक्श लायलपुरी। मौसम आये और गये लेकिन आप पर किसी तरह का रंग कभी नहीं चढ़ा। हमेशा हर कदम सोच सोच कर, फूंक फूंक कर रखा। 175• प्रेरणा समकालीन लेखन के लिए आप एक्टिव हैं, याददाश्त तेज है। अच्छे-अच्छे प्रोग्रामों में जाकर अपना कविता पाठ करते हैं, नज्म पढ़ते हैं तो दर्शक मंत्रमुग्ध होकर वाह वाही करते हैं। एक जमाने में आप रेडियो और दूरदर्शन के लिए बहुत लिखते थे। मैं भी तब रेडियो और दूरदर्शन में खूब बिजी थी, अक्सर मिलना हो जाता था एक दूसरे के दुख-सुख बांटते थे। आज भी किसी प्रोग्राम में मिलते हैं, बातें करते हैं। मतलब आज भी, आज भी आप पहले जैसे मिलनसार हैं। नक्श साहब से हाल ही में मिली तो अपने बारे में कुछ यूं बताने लगे पार्टीशन के बाद लखनऊ हमारा रैन बसेरा बना। पिता जी चाहते थे कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद इंजीनियर बनूं लेकिन मेरा दिल पढ़ाई में नहीं लगता था। शेरो शायरी और गाने लिखने का ज्यादा शौक था। लिटरेचर बहुत पसन्द था। मेरी शुरुआत भी बढ़िया रही लिखने में। एक नाटक 'क्लब डांसर' में गाने लिखने का चांस मिला 'मेरे काले काले बाल सजन, मेरे गोरे गोरे गाल सजन मेरे बस में शाम सवेरा है' मेरे लिखे गाने खूब हिट हुए। बाद में इसी चक्कर में काम की तलाश में बम्बई चला आया। खूब स्ट्रगल की लेकिन किसी के दरवाजे पर काम मांगने नहीं गया। मुझे मेरे हुनर की वजह से काम मिला और आज तक इसी हुनर की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में टिका हुआ हूं।


सर शुरूआत कैसे हुई?


शुरू शुरू में नाटकों के गाने हिट हुए फिर महफिलों में शेरों शायरी पढ़ने लगा टी.वी. सीरियल और आकाशवाणी और विविध भारती के प्रोग्राम लिखने लगा फिल्मों के लिए गाने लिखने लगा जो धीरे-धीरे हिट होने लगे। 'चेतना', 'हिना', 'नूरी' जैसी फिल्मों के गाने हिट हुए। मेरे हिट गानों की लिस्ट बहुत लम्बी है। पंजाबी गाने भी बहुत लिखे जो काफी हिट हुए।


आजकल के गानों का क्या हाल है?


हंस दिये (बेहाल है) मैं आजकल गाने कम लिखता हूं। फूहड़ता बहुत है वल्गेरिटी है शब्दों में। अंग्रेजी शब्द भी ज्यादा होते हैं। अच्छे गाने कोई इस लिए नहीं लिखता, क्योंकि कोई खरीददार नहीं।


आपका तो पूरा जीवन ही लेखन करते फिल्म संसार में बीत गया। कोई शिकवा शिकायत?


___ नहीं, बिल्कुल नहीं, मेरा पूरा परिवार इकट्ठा रहता है। एक बेटा डायरेक्टर, कैमरामैन है, गुजराती, मराठी फिल्में करता है। मैंने आज तक किसी से कुछ नहीं मांगा। मांगा तो ऊपर वाले से, रब से। मेरा लिखा एक शेर हाजिर है


मैं वह दिया हूं, जिसे आंधियों ने पाला है,


बुझा न पाओगी, ऐ वक्त की हवाओं मुझे।