प्रमोद त्रिवेदी

पचहत्तर पार सृजनरत रचनाकार


प्रमोद त्रिवेदी जन्म 24 अक्टूबर 1942 बड़नगर (म.प्र.) शैक्षणिक प्रमाण पत्रों में दर्ज 24 जुलाई 1942 । हाईस्कूल तक पढ़ाई बड़नगर में रहकर शिक्षा पूरी की।


एम.ए. हिन्दी और बाद में "प्रगति वादोत्तर काव्यांदोलन : आधार स्वरूप और परणतिविषय पर शोधोपरांत विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से पी.एच.डी. की उपाधि। सन् 1968 से सान्दीपनि कला एवं वाणिज्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उज्जैन के हिन्दी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष रहे। कुछ समय के लिए प्राचार्य भी। सन् 2001 में महाविद्यालयीन सेवा स्वैच्छिक मुक्ति ले ली।


प्रकाशित पुस्तकें : 3 काव्य संग्रह, 3 नाटक, (नाटक 'का पुरुष' म.प्रसाहित्य अकादमी भोपाल से पुरस्कृत । 7 उपन्यास ( उपन्यास-"तथापि" मलयालम भाषा में अनूदित और चर्चित ।) उपन्यास 'पुतलों की बस्ती में शीघ्र प्रकाश्य आलोचना-चिंतन की 4 पुस्तकें। संपादन-5 पुस्तकें का। 1 कहानी संगह। “बात निकली है तो दूर तलक जाएगी" (साक्षात्कार) शीघ्र प्रकाश्य।


बचपन में घर के घोर पारंपरिक और नैष्ठिक वातावरण और कुल की पौराणिक परंपरा ने बाल्यकाल में ही कल्पनाशील बनाया तो जड़ता के प्रति तर्क करना भी सिखाया। कालान्तर में आधुनिक सोच ने यथास्थिति के प्रति द्वन्द्व और जिज्ञासा से सार्थक रास्ता भी मिला। इसी टकराहट से अपनी परम्परा को विश्लेषित करने की आलोचनात्मक समझ विकसित हुई । यही सृजन का आधार बना। लघुपत्रिका"ओरांग उटांग" "जमीन" पत्रिकाओं का संपादन-चित्रकला और रंगकर्म में गहरी रुचि रहीइतनी लंबी रचना अवधि दो-चार पुरस्कार भी मिल गए।