खुशी देती हूँ

कविता


डॉ.पद्मजा शर्मा


'कल नहीं आऊँगी' कहकर


मुझे उदास कर जाती है


मैं देखती रहती हूँ


वह इतराते हुए अपने घर जाती है


मैं उसके जाते ही तनाव से घिर जाती  हूँ 


कि वो कल नहीं आएगी


और कल आ जाता है


वह नहीं आती।


घर में काम का उफान-सा आ जाता है


किताबें उपेक्षित


कलम निराश


कुछ कर नहीं पाती


सिवाय इन्हें पीट देने के


इधर बर्तन शोर करते हैं


उधर ढेर कपड़े सिर चढ़ते हैं


फर्श बुरा सा मुंह बनाता है


रसोई-बुहारी-कटका बर्तन-भांडा


कपड़ा-लत्ता, करते-करते


भूख मर जाती है


मैं थक जाती हूँ


न आने का कहकर


वह अचानक


किसी सुबह दरवाजे पर दस्तक देती है


और कहती है


'आंटीजी मैं आ गई


सोचा आपको आज खुशी देती हूँ'


और खिलखिलाती है


तब उसका सांवला हँसता चेहरा देखकर


बर्तन खड़-खड़ हँसने लगते हैं


कपड़े थप-थप जैसे धुलने लगते हैं


फर्श चमकने लगता है


किताबों के पन्ने फड़फड़ाने लगते हैं


कलम के इठलाते ही


मैं मुस्कराने लगती हूँ


पूरा घर खिलखिला उठता है


जब वह न आने का कहकर


औचक आ जाती है।


बाजार और प्यार


हमारे मधुर रिश्तों को


घुन की तरह खा रहा है बाजार


ठाठे मारते बाजार की सुनामी में


ऊब चूब हो रहा है प्यार


बाजार के उस पार हो जैसे प्यार


बाजार को चाहिए खरीददार


खरीददार हो तो चलो बाजार


खरीदो बाजार तो ही पाओगे प्यार


यानी पहले बाजार फिर प्यार


भाई-भाई के बीच


भाई-बहन के बीच


पति-पत्नी के बीच


प्रेमी-प्रेमिका के बीच


दोस्त-दोस्त के बीच


प्रेम की जगह


इस कदर घुस गया है बाजार


कि देखो तो दूर-दूर तक


हिलोरें लेता दिखता है बस बाजार ही बाजार


लगता है जैसे समा गया है समूचा प्यार


महंगी गिफ्ट्स में


पांच सितारा होटल रेस्तरां


पिज्जा बर्गर


गहने पर्स लिपिस्टिक में


बरमूडे, टी-शर्ट, कुर्ते, जीन्स


परफ्यूम डियो


सैंडिल, जूतों


कार, मोटरसाइकिल में


जिनकी हद में ये चीजें हैं


जो कर सकते हैं इंतजाम इनका


गोया वो ही कर सकते हैं प्यार


जिनके पास ये नहीं


और जो जुटा नहीं सकते


उन्हें क्या हक है करने का प्यार


यानी पैसा है तो बाजार है


और बाजार है तो ही प्यार है


प्यार तक पहुँचने का रास्ता


बाजार से होकर निकलता है


और बाजार हो गया है बहुत महंगा


महंगा है तो खरीदार होगा ही पैसे वाला


प्यार के लिए अब जरूरी नहीं प्यार


प्यार के लिए जरूरी नहीं


दिल का जोरों से धड़कना


कि आँखों से प्यार का इजहार होना


छुप छुपकर मिलना


याद में घंटों गुम रहना रोना


प्यार के लिए अब जरूरी नहीं


अपनी खामोशियों में


जुबान का करोड़ों बार कहना प्यार


प्यार के लिए जरूरी नहीं धैर्य


कि प्यार करे महीनों बरसों


प्यार का इंतजार


प्यार को चाहिए इंसटेंट प्यार


और यह प्यार जगाता है बाजार


यानी बाजार के दम पर है प्यार


इधर अट्टहास कर रहा है बाजार


उधर सहमा सा खड़ा है बेचारा असल प्यार


समय की इस सच्चाई को समझ ले मेरे यार


कि प्यार के लिए अब जरूरी नहीं प्यार


आज प्यार के लिए जरूरी है


फकत बाजार बाजार और बाजार