मां का मोबाइल

कविता


डॉ बज श्रीवास्तव


 


आज इंतजार ही रहा


पर नहीं आया मां का फोन


जरूर चार्ज नहीं हो पाया होगा


सुबह से सभी बच्चों से बात


करते करते हो गया होगा डिस्चार्ज


मां आखिर सीख ही गई


फोन संभालना


चश्मे में से देखकर जब वह


खोजती है बेटी का नंबर


अद्भुत दृश्य होता है


जैसे मिलने ही वाला हो उनको राहत का


खजाना


कहीं जाते समय अब


दवाई के बैग के साथ-साथ


मोबाइल और चार्जर रखना नहीं भूलती वह


दूर बैठे बच्चों को फोन नहीं लग पाना


यानि अधूरी रह जाना


दिनचर्या


है मां के लिए


सबको साथ देखने की


तलब कुछ तो कम हो जाती है


जी भर के बतिया लेने से


सत्तर की उमर में


यही संवाद ही तो हैं जो मां की खुशी की पौध में


पानी सींचते हैं।


सबको सबसे है


हाल चाल नहीं पूछने की


शिकायत


पर मां ने अपने


मोबाइल से जोड़ रखा है रिश्तों को


मां से नहीं है


किसी को शिकायत।