अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रार्बट फास्ट की कविता
अनु. डॉ. प्रद्युम्न भल्ला
छोटा घर था एक पुराना बाहर जिसके था इक छप्पर
रोज काफिला आता जाता वाहनों का रहता शोर सरासर
पुरजोर गुजारिश थी मालिक की रुके कोई वहां पर आकर
ठीक नहीं है कहना केवल मांग रहा था पेट की खातिर
कुछ धन की आशा थी उसको जिससे जीवन चलता है
खिलते हैं कुछ फूल शहर में जीवन पल-पल जलता है
चमकते वाहन चलते जाते इक पल कोई न ठहरा
देखा केवल कि रंग बेरंग हो गया था गहरा
देखा निशानों को एन एस के रुकते थे वाहन कुछ देर
पाते थे लेकिन वहां पर बेचे जा रहे थे बेर
पर्वत वाले दृश्य सुंदर नजरों को लेते थे घेर
या फिर चांदी जैसे धब्बों वाले कदुओं का दिखता था ढेर
लालच लोभ के सभी लुटेरे लूटेंगे हमको यहां आकर
बुद्धिमान वो कहलाएंगे मूर्खता हमको सिखलाकर
सोते हैं आराम से फिर वो लोगों को लाचार बनाकर
जीवनभर वो लाखों कमाते औरों को लाचार बनाकर
वही पुराने ढंगों से वो चैन से सोते नींद उड़ाकर
बचकाना सी इच्छा मेरी कब तक सहन मैं करता जाऊं
खुल खिड़कियों से आए निराशा कब तक मन में धरता जाऊं
करता रहूं मैं प्रभु से विनती इंतजार में मरता जाऊं
कैसे रुकेगा कोई वाहन इसी सोच में सिहरता जाऊं
कोई एक तो रुक जाए पूछ आकर फसल का दाम
एक रुका था घास रौंदने नहीं था उसको कोई काम
रस्ता पूछा गाड़ी मोड़ी इक वाहन का था पैगाम
गैलन गैस क्या मिल पाएगी रुका वो करने को केवल नाम
क्या वो देख नहीं सकते हैं गैस यहां पर नहीं है मिलती
देश के धन से कली लाभ की सबके मन में क्यों न खिलती
जीवन में जीवट की सुई बढ़त पे जाकर क्यों न हिलती
आवाज हमारी साथ देश सुई सी है क्यों सिलती
खुशी का मेरी अंत न होगा कैसे सबको ये बतलाऊं
ठक झटके से सभी दुखों का अंत यदि मैं कर पाऊं
काश मेरे अपने होते तुम हो भी मैं जब भी मैं आऊं
दर्द मेरा भी बांट सकोगे तुमसे ये प्रस्ताव मैं पाऊं
माना धन है पास तुम्हारे लेकिन धन केवल नहीं तुम्हारा
हम जैसों के लिए भी खोलो अपने धन का यह पिटारा
सुंदरता को नहीं देखते केवल यही नहीं गिला हमारा
मौन हमारा दुख है लेकिन तुमने इसको नहीं निहारा
दूर शहर से एक सड़क पर छप्पर है छोटा सा न्यारा
कुछ धन अपना भी हो जाए सपना ऐसा भी है हमारा
छोटा सा प्रयास है अपना भले मिटे वजूद हमारा
फिल्मों में दिखने जैसा क्यों न होगा जीवन हमारा
नेताओं ने कहां दिया है एक घरौंदा रहने को
गांव थियेटर और स्टोर हमारे होंगे कहने को
हम मासूमों के लिए बहेगा दया का दरिया बहने को
नहीं सोचना होगा हमको दुःख न होंगे सहने को