यह भरतनाट्यम का एक पोज नहीं है

कविता


अरुणाभ सौरभ


यह कविता प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखिका अंरुधती राय को समर्पित, जो कहती हैं कि 'मेरी दुनिया मर गई है/मैं उसका मार्सिया लिख रही हूं।' जीशा भट्टाचार्य एक स्कूल छात्रा है, जो मेरे स्कूल में दसवीं में पढ़ती हैं और भरतनाट्यम करती है, उसकी मां मुझे उसका एक फोटो दिखाती हैं, जिसमें जीशा अपनी उस बहन के साथ है जो चलने-फिरने में सर्वथा असमर्थ है बहरहाल कविता


तुम समय के खिलंदड़ेपन से अनजान


समय में ताल भरने में निमित्त


भर देती हो कुछ ध्वनि


जब तुम अपनी बेहद सुंदर आंखों से


गोल-गोल देखती हो दुनिया


कभी कह नहीं सकती हो, कि


'मेरी दुनिया मर गयी है...


मैं उसका मर्सिया लिख रही हूं'


इस समय में


जबकि टेलीविजन से चलने वाली गोली ने


छलनी कर दी है- संगीत की छाती


और तुम गा रही हो


'मधुकर निकर करंवित कोकिल


कूजति कुंज कुटीरे...'


इसी समय में


जब नृत्य करने वाले पांवों को काटकर


बाजार में बेचा जा रहा है


लेगपीस


तुम भरतनाट्यम के एक पोज में


थिरका देती हो पांव


तुम्हें नृत्य करनी है-ताउम्र


गाना है-ताउम्र


अबकी अरुंधती से भेंट हुई तो कह दूंगा, कि


किसी की दुनिया आसानी से नहीं मरती


जिसकी शिनाख्त पर मार्सिया की कवायद हो


और एक लड़की ने


चौदह साल की उमर से ठान लिया है, कि


वो अपनी दुनिया में जमके जीना चाहती है


एक दुनिया गढ़ना चाहती है


कि जिसमें गा सके खुलेआम


बिना किसी स्वार्थ के


कर सके भरतनाट्यम


शायद उसके बुलंद इरादे को


मिल ही जाए मंजिल


वैसे शुक्रिया मेरी बच्ची


मैं तो गर्व से कहता हूं, कि


अगर ईश्वर की औकात है तो


एक बिटिया मुझे ऐसी ही दे


मुझे ही क्यों


हर किसी को


जो बिल्कुल इसी की तरह हो


बिल्कुल इस लड़की की तरह


गायन जिसकी शौक हो


गायन जिसकी शौक हो


नृत्य जिसकी मंजिल....