मेरी कविता

कविता


संजीव ठाकुर


मुझे नींद नहीं आरही है


जबकि मैं लिख चुका हूँ


अपनी प्रेमिका को खत


मुझे उसकी याद आ रही है


मैं उसे छूना चाहता हूं इसी वक्त


इसलिए चाहता हूं


मेरे हाथ हो जाएं लम्बे


इतने लम्बे, इतने लम्बे कि


पहुंच जाएं हजारों मील दूर


पसीने से सनी उसकी तरहबी तक


मैं छू लेना चाहता हूं


उसके दाएं हाथ की मध्यमा को


जिसमें उग आया है ठेला-बदमाश


लिखते-लिखते


वो अभी सो रही होगी निश्चिंत


रात के साढ़े बारह-एक बजे जगकर


लिख सकता है कविता कोई ?


मैं पागल हो गया हूं दोस्तो


कवि नहीं रह गया हूं


मुझे मिल गई है असली कविता-जीवंत कविता


मैं अपनी कविता से प्रेम करता हूं।


प्रेम करने से पहले


ऐसा करते हैं


जुटा लेते हैं पहले


नापने जोखने के यंत्र-संयंत्र


तैयार कर लेते हैं आचार संहिता


यह करना है


यह नहीं करना है


क्या करना है


क्या नहीं करना है


आदर्शों की पोटली सिर बाँध


भावना को पैरों तले रौंद


व्यवहारिकता सिर आँखों लेकर


बैठते हैं करने प्रेम।


हाँ, अब ठीक है


नाटक करना सीख गए हो


कुशल अभिनेता नहीं हो लेकिन


पुकारते हो नाम मेरा


आवाज भौंडी हो जाती है


ऐसा करते हैं


सीख लेते हैं पहले कुशल अभिनय


स्वर-साधना करने के बाद


बैठते हैं करने प्रेम।


 


पुल


पेड़ के


दो पत्तों के बीच


पुल


मकड़े का धागा।