कविता
विवेक सत्यांशु
हमारी मुसीबत में
सबसे अधिक साथ
हमारी कविताओं ने दिया
जब भी दुख ने हमें तोड़ा
हमारे टूटेपन को
कविताओं ने ही बचाया
अंधेरे में उजाले से
मुलाकात कविताओं ने ही कराया
भूखे रहने पर
कविताओं ने भोजन दिया
उदासी और दुख में
कविताओं ने मां जैसा
आंचल दिया
इससे ज्यादा बड़ी
उपलब्धि
कविताओं से
कुछ नहीं हो सकती
आरिवर क्यों?
अपमान और उपेक्षा को
इतना अर्थवान
आखिर क्यों बनाते हो
कि तुम्हारे रोशनी के
चिराग को
अँधेरे
में बदल दे?
जीवन में
जीवन में कई दरवाजे
खट खटाये
कुछ दरवाजे
कभी खुले ही नहीं
कुछ दरवाजे बंद ही नहीं हुए
कुछ दरवाजे
प्रतीक्षारत मिले
स्वागत के लिये
'अतिथि देवो भवः'
के भाव संजोये हुए
कुछ दरवाजों पर जा कर
कोई खाली हाथ नहीं लौटता
कुछ जगह
दरवाजे थे ही नहीं
कविता
जहां नहीं पहुंचेगी कोई खबर
जहां नहीं पहुंचेगा
उनका कोई हमदर्द
जहां उनका आंसू पोंछने वाला
कोई नहीं होगा
जहां नहीं पहुंचेगे मंत्री, सांसद
विधायक वहां हमारी कविता
आग की तरह पहुंचेगी
और उनके सुख-दुख में
साझीदार होगी।