कविता
हीरालाल नागर
1.
जब मेरा बसंत
मेरी बाहों से छिटककर
भाग जाने को आतुर था
जब मेरा यौवन
मेरे रक्तकणों से
छूट जाना चाहता
मेरा जीवन जब
दुःस्वप्न की
अंधेरी गलियों में
भटक रहा था
तब
केवल तुम थीं हीरामणि
जिसने रूठे बसंत
टूटे यौवन
और दुख भरे जीवन को
अपने प्यार से संवारा
तुम्हारे इस प्यार का
बहुत अहसानमंद हूं हीरामणि
2.
ऐसा कुछ नहीं था
कि तुम
किसी विस्फोट के साथ
मेरे जीवन में अवतरित हुईं
तुमने
बहुत धीरे से प्रवेश किया
बिल्कुल चुप दबे पांव
एक मैं था
जिसने तुम्हें देखकर
धरती-आसमान एक कर डाला
तुम्हारी दी हुई आग को
मुट्ठी में लेकर
सड़कों और गलियों में उछालता रहा
तुम्हारी हर मुद्रा को
खुद में ढालने के लिए व्यग्र होता रहा
पर तुम्हें कोई जल्दी नहीं थी हीरामणि!
तुम एक लय और ताल में
मेरे भीतर
उतरती रहीं
तुम्हारे इस धैर्य का
बहुत प्रशंसक हूं हीरामणि!
3.
हीरामणि!
मैं बहुत जल्दी में था
शायद इस कारण
मैं तुम्हारे भीतर की चीजों को
नहीं तलाश सका
हीरामणि!
मैंने तुम्हें
किश्ती की तरह इस्तेमाल किया
सागर-दौड में मैं
किसी किसी से पीछे नहीं रहना चाहता था हीरामणि!
मैं किनारे में
डूबना नहीं चाहता था
आखिर मैंने खुद को मल्लाह समझा
तुम्हें
तुम्हारी मंजिल तक
पहुंचाने का भार
शायद तुम पर ही था
इस होड़ में
तुम्हारे अहसास को
नहीं समझ पाया
तुम्हें
तुम्हारी जिज्ञासाओं से दूर रखकर चलता रहा
इसके बावजूद
तुमने अपना विश्वास नहीं खोया
तुम्हारे इस साहस की
प्रशंसा करता हूं हीरामणि!
4.
हीरामणि!
तमने मेरे जीवन में कई रंग भरे
मौसम को
पहचानने में मदद की
तुम्हारी संपूर्णता पर
मैंने कविता लिखी
कविता
हमारे
पहले प्यार की गवाह है
कविता प्राण है हीरामणि!
अफसोस!
कविता की वापसी पर
मैंने तुम्हें निरादृत किया
तुम मेरी लेखनी पर
कदाचित अवरोध
खड़ा भी करतीं तो मैं क्या करता
तुम्हारी नेकदिली का
आदर करता हूं
हीरामणि!
5.
मैं यह नहीं समझता था हीरामणि!
कि
तुम्हारी नाराजगी
पतझर की खुशबू की तरह फैलेगी
और तुम
उदास होने की स्थिति में आ जाओगी
तुम अपनी जिद के पंख
इस अहिस्ते से खोलोगी कि
मेरे अस्तित्व को
ग्रहण लगने का भय सताने लगेगा।
हीरामणि!
अच्छा होता
मेरे आचरण के खिलाफ
बगावत करने से पहले
सोच तो लेती
हो सकता था
हम कोई रास्ता ढूंढ़ ही लेते
अब भी वक्त है हीरामणि!
कि हम उस ना समझी को
लड़ाई के किसी मुकाम तक
पहुंचाने से पहले
जुड़ें।
6.
यह सच है हीरामणि!
बात की नोक
बहुत महीन होती है
ब्लेड की धार की तरह
तेज और असरदार!
जिसके छूने भर से
बहने लगता है रक्त
हृदय से बहते लहू को रोकना
बहुत मुश्किल होता है हीरामणि !
बात कभी-कभी
बंदूक की गोली भी बन जाती है
लगते ही जो
कर देती है
शरीर को छलनी-छलनी
विषबुझी बात भी
कम असर करती है हीरामणि!
जिसके लगते ही
स्नेह-विहीन होने लगता है मनुष्य
बुझने लगता वह धीरे-धीरे
बात किसी की भी हो
हिये तराजू बोल होना चाहिए।
अच्छा है हीरामणि कि बात की नोंक से
हम एक-दूसरे को
आहत होने से बचा लें।