गहन अनुभूतियों के कवि शमशेर बहादुरसिंह

आलेख


डॉ.सुधा त्रिपाठी


शमशेर बहादुर सिंह अपनी बानक के अलग कवि थे। इस लिए वे आलोचकों के बीच अपनी कविताओं को लेकर हमेशा चर्चा में रहे हैं। एक शमशेर में कई शमशेर दिखाई देते हैं। लेकिन सभी विशिष्ट कोई किसी से कम नहीं। जब मजदूरों के पक्ष की बात हो तो मजदूरों के पक्ष में खड़ा होने वाला दूसरा काव्य व्यक्तित्व वैसा नहीं दिखाई देता। जब कविता में रोमानियत की बात होती है, प्रेम की बात होती है, रूप की बात होती है तो शमशेर वहां भी अपने विरल रूप में दिखाई देते हैं और जब कविता में प्रगतिशीलता की बात होती है तो वे प्रगतिशीलों के बीच उतने ही दमखम के साथ हमें खड़े मिलते हैं और जब कविता में सौन्दर्य की बात आती है तो शमशेर प्रकृति सौन्दर्य के साथ-साथ नारी के दैहिक सौन्दर्य के सबसे बड़े कवि के रूप में दिखाई देते हैं। शमशेर के कविताओं की विविध पक्षों को लेकर अब तक बहुत लिखा गया है। कविता के इन विशेष वैशिष्टय को लेकर ही उन्हें कवियों का कवि कहा गया है जो पत्र, पत्रिकाओं और अब तक की प्रकाशित पुस्तकों में बिखरा पड़ा है जिसे समेटने-सहेजने चयन करके उनकी एक मुकम्मल बेलौस तस्वीर को सामने लाने की जरूरत काफी दिनों से महसूस की जा रही है।


 जो पठन-पाठन की क्षुधा को पूरा करने के साथ-साथ छात्रों के लिए भी उतनी ही उपयोगी हो। इधर कई वर्षों से मेरा यह प्रयास रहा हैं कि मैं ऐसी कोई पुस्तकशमशेर पर तैयार करूं इधर उनकी शताब्दी वर्ष 2010-11 के आसपास कछ किताबें जरूर आयी लेकिन वह शताब्दी वर्ष की हड़बडी में वह अपना सही रूप नहीं ग्रहण कर पायी। शमशेर के काव्य वैशिष्टताओं को लेकर जिस स्थिर चित्त से काम करने की जरूरत थी वह उनमें नहीं दिखाई देती है। चीजों को एक जगह समेट कर रख देने मात्र से किसी काम की लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो जाती है जब कि उस चयन में वैशिष्टय रूप का झलके।


शमशेर की काव्य विशिष्टतायें चयन की विशेष की मांग इसलिए भी करती हैं क्योंकि वे कविता के भावों को शब्दों के रंग से बांधते हैं वे शब्दों का काम रंगों और ब्रश से लेते हैं। शमशेर व्यक्ति और समाज के साम्प्रदायिक भावों को व्यक्त करते समय उनके बेलाग शब्द वाम वाम वाम चिल्ला कर अमन का राग रचते हैं। शमशेर के अन्दर जबरदस्त आधुनिक भाव बोध है। उनकी आधुनिकता जितनी गहरी और पर्तदार है, सोच और संवेदना में उतनी ही मजबूत । सादा सा दिखाई देने वाला उनका व्यक्तित्व बहुत ही गहरे संश्लिष्ठ काव्यबोध को जीता दिखाई देता है। इनका यथार्थवादी सौन्दर्य उनकी कल्पना बोध से अलग है जिसे वह मूर्तरूप देते हैं। रूप विशेष के प्रति आकृष्ट होने के कारण ऐसा करते हैं लेकिन इस बिना के तहत ही उन्हें रूपवादी नहीं कहा जा सकता हैं क्योंकि रूपवादी हमेशा रूप को प्रधान मानकर चलता है लेकिन शमशेर के साथ ऐसा नहीं है।


रूप के प्रति आकर्षण होना गलत नहीं होता है क्योंकि रूप के प्रति आकर्षण होना आदमी के सहज धर्म में आता है। इसी तरह रोमानी होना बुरा नहीं है क्योंकि कुछ-कुछ हर आदमी रोमानी होता है। रोमान का कौन सा पक्ष रचनाकार के केन्दीय भाव में है, यह देखना चाहिए। इस मामले में शमशेर सबसे अधिक सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं। एक जनवादी सोच का रचनाकार अपनी विषयवस्तु के चुनाव को लेकर जितना सतर्क होता है उससे कहीं अधिक सतर्क रचना के रूप विधान को लेकर होता है। शमशेर में यह बात सबसे अधिक लागू होती है। यदि शमशेर की कविताओं को गौर से देखें तो पायेंगे कि कविता का मूलतत्व कभी बाधित नहीं होता है, इस मायने में शमशेर की दृष्टि सबसे अधिक भरोसे की दिखती है, जिस समय शमशेर यह लिख रहे थे। उस समय उनके समकालीनों के अलावा महादेवी, निराला, प्रसाद भी लिख रहे थे। कौन क्या कहां से लेता है, किस तरह से लेता है कैसे उसे उठाता है और कैसे उसे धरता है। जब हम इस बात पर गौर करते हैं तो हमें शमशेर सबसे अधिक चुनौती देते दिखाई देते हैं "लो मुझे/और संभालो अपनी प्रतिभा/खोओ अपने एक जनम के तम को/और पार करो मेरा सतरंगी तम/मेरा अर्थावरण मेरा नारी रूप जिसके/तुम एक बंद उस परिधि की" शमशेर के भीतर एक कोमल मन है, वह जितना अधिक संवेदनशील है उतना ही अधिक संकोची है लेकिन दृढ़ है। आहत जल्दी होने पर भी जल्दी टूटता नहीं है। शमशेर की कविता छोटी हो या बड़ी वह अपना व्यापक प्रभाव पाठक पर छोड़ती है। “एक पीली शाम/पतझर का जराअटका हुआ पत्ता/शांत मेरी भावनाओं में तुम्हारा मुख कमल" शमशेर वातावरण रचने वाले भी कवि हैं। इनकी हर कविता इनका वातावरण है, जिसे शमशेर पूरा का पूरा उठाये हुये चलते हैं इससे होता यह है कि ध्वनि रंग शब्द सबके सब साथ हो लेते हैं।


___ शमशेर राजनीति को गहरा मानवीय सामाजिक सरोकार मानते हैं। सौन्दर्य के सूक्ष्म रंगरूपों को प्रमुख रूप से लेकर चलते हैं। शमशेर उतना ही साम्प्रदायिक मुद्दों पर लिखना जरूरी मानते हैं जितना शाम सुबह के रंगों, फूलों और स्त्री के सौन्दर्य पर। शमशेर ने प्रयोग के लिए विषयों को नहीं खोजा बल्कि विषयों के लिए प्रयोग किये हैं। इस मायने में जनवादी धारा से गहरे जुड़ने के साथ-साथ वह कहीं कहीं उससे भिन्न और विशिष्ट दिखाई देते हैं। वे एक ही सीध में खड़े होकर पूरी तरह से नहीं देखे जा सकते हैं। वह अपने लिए एक अलग विशेष जगह की मांग करते हैं। कला और विचारधारा के आपसी सह संबंधों को एक बिन्दु पर ले जाकर समझने की मांग शमशेर की कवितायें पाठकों से करती हैं।


भाषा के लिहाज से शमशेर उन रचनाकारों में से हैं, जिनकी कविताओं ने आधुनिकता के साथ-साथ प्रगतिशील काव्यधारा को नये फलक दिये हैं। प्रेम और सौन्दर्य की अद्वितीय मानक छवियां देकर व्यंजना की समृद्धि प्रदान की है। शब्द, रूप रंग-गंध स्पर्श के ऐसे ऐन्द्रिय बोधों को भाषा में नये तेवरों के साथ संगुफित किया है कि वह मानवीय बोध के नजदीक से नजदीक पहुंचता दिखाई देता है। शमशेर इन मामले में बहुत सामर्थ्यवान कवि हैं। शमशेर प्रेम और सौंदर्य के कवि कहे जाते हैं। सौंदर्य इनके यहां स्पृहा का सौंदर्य हैं। प्रेम जीवन के अनन्त विस्तार का प्रतीक है। सौंदर्य की स्पृहा ही इसे संचालित करती है। सौंदर्य और प्रेम का स्वीकार-भाव ही आदमी को मनुष्यता की ओर ले जाता है जो जनवाद को सीधेसीधे क्रान्ति के रास्ते में ले जाने में विश्वास करते हैं। उन्हें शमशेर से कुछ निराशा हो सकती है क्योंकि शमशेर उत्तेजना के कवि नहीं हैं। प्रेम सौन्दर्य और प्रगतिवाद को लेकर यह स्थिर भाव बोध के कवि रहे हैं जिनमें प्रेम के प्रति गहरा भाव बोध होता है। "गरीब के हरदम/टंगें हुये कि रोटियों के लिए हुये निशां लाल लाल जा रहे कि चल रहा/लहू भरे ग्वालियर के बाजार में जुलूस" शमशेर की कविताओं को देखें तो हमें इनमें आकाश ही आकाश दिखाई देता है। धरती कहीं नजर नहीं आती हैं। शमशेर के पास उनकी धरती नहीं। सिर्फ आकाश ही आकाश है और उसके रंग हैं, उसकी छटायें हैं। शमशेर के बारे में लोगों का कहना है कि वे कवि से अच्छे गद्यकार और आलोचक थे। आज जो शीर्ष कवि और बड़े कवि के रूप में शुमार किये जाते हैं। उन पर सर्वप्रथम शमशेर ने ही आलोचनायें लिखी थीं शमशेर के लिखने के बाद लोगों का ध्यान उन कवियों पर गया था। हमारे यहां परम्परा में एक कवि को आलोचक और गद्यकार से बड़ा माना गया है।


शमशेर कविता कला के सबसे बड़े कवि हैं। उनके छुवन से नितान्त व्यक्तिगतता भी सामाजिकता के गहरे अर्थों में बदल जाती है। यही कारण है कि शमशेर की प्रेम और सौन्दर्य की व्यक्तिगतता गहरे अहसासों को जानने का साधन बनती दिखाई देती है।


"यह पूरा/कोमल कांसे में बना/गोलाइयों का आइना/सीने से कस कर आजाद हैं। जैसे किसी खुले बाग में सुबह की सादा/भीनी भीनी हवा" शमशेर की निगाह में राजनीति एक गहरा सामाजिक सरोकार है। तभी तो वह प्रेम और सौंदर्य पर लिखने के साथसाथ धार्मिक कदाचारों, दंगों आदि पर कवितायें उसी गहरे अहसासों के साथ लिखते हैं।