जीत

कविता


अजय चन्द्रवंशी


वह हर बार जीतता है


फिर भी बेचैन रहता है


उसका अट्टहास


बदलता जाता है रुदन में


दरअसल वह जानता है


वह जीतता नहीं


कुछ लोग उससे हार जाते हैं


तटस्थ


वह कशमकश में है


वह किस तरफ है


क्योंकि उसे मालूम है


वह किस तरफ है।


अनुयायी


गलत यह नहीं कि


तुम चलते हो


उसके बताये रास्ते पर


गलत यह है कि


तुम सिर्फ चलते हो


देखते नहीं


रखुद्दार


वह रोज ऐलान करता है


वह बिका नहीं है


और इस तरह


रोज बेचता है


अपने 'न बिकने


झूठा सच


वह बहस में


जोर से बोलता है


लगभग चीखता है


लोग चुप रहते हैं


लिहाज में


या कभी खत्म न होने वाली


बहस से बचने


इस तरह


उसका झूठ सच हो जाता है।