गजल

'दरवेश' भारती


जेलो-दिल से शख्स जो बेदार है।


दरहकीकत वो ही खुदमुख्तार है।।


आंख मूंदी आ गये तुम सामने।


बीच अपने कब कोई दीवार है।।


रूप-रंग उसका, महक उसकी अदा।


उसकी यादों से सजा गुलजार है।।


दर्द, गम, अरमां, खुशी, मस्ती भरा।


दिल हमारा दिल नहीं बाजार है।।


जीस्त में कुछ कर गुजरने के लिए।


आशनाई खुद से भी दरकार है।।


दर्द की शिद्दत के बढ़ने से लगा।


ये तो कोई लादवा औजार है।।


जिसने भी 'दरवेश' हिम्मत हार दी।


जिन्दगी उसके लिए दश्वार है।।


विनय मिश्र


आग सीने में दबाए ख्वाब इक पलता रहा।


मैं तुम्हारी आहटों में रात-भर जिंदा रहा।।


एक कश लेकर महज सिगरेट तुमने फेंक दी।


और मैं खामोश होकर देर तक जलता रहा।।


धूप के किस्से नदी की बात जंगल की खबर।


आज केअखबार-सा जीवन सदा ताजा रहा।।


प्रश्नचिन्हों की तरह उलझे हुए हालात में।


कौन उत्तर की तरह इक हौसला भरता रहा। ।


दाम चीजों के उछलकर आसमानों पर चढ़े।


भाव लेकिन जिंदगी का हर तरफघटना रहा।।


यूं दिखाने को मिलाया हाथ सबने था मगर।


हर कोई अपने में डूबा हर कोई तनहा रहा।।


एक भाषा खेलती थी नाव कागज की लिए।


मैं नदी में डूब जाने का मजा लेता रहा।।


जहीर कुरेशी


समंदर के किनारे घर बने हैं।


कुछ इस कारण ही मन में डर बने हैं।।


सफर में जो चले थे साथ दिनभर ।


वही रातों को हमलावर बने हैं।।


हैं उनके पास हर शैली के सपने।


वो जो सपनों के सौदागर बने हैं।।


अडिग देखा गया विपदा में उनको।


वो जिनके हौसले लड़ कर बने हैं।।


पिता का कण्ठ तब रंधने लगा था।


उसी के बाद, आंसू स्वर बने हैं।।


जो पंक्षी हैं, उन्हें ये मत बताओ-।


उड़ानों के लिए ही 'पर' बने हैं।।


जो सत्यम् है, शिवम है जिंदगी में।


उसी के साथ हम समंदर बने हैं।।


अनिरुद्ध सिन्हा


जब अंधेरों का डर गया होगा।


रात का जख्म भर गया होगा।।


नींद इस सोच में नहीं आयी।


कोई सपना बिखर गया होगा।।


अपने होने का जब भरम टूटा।


जब समुंदर के घर गया होगा।।


लोग बातें बना रहे होंगे।


वक्त छूकर गुजर गया होगा।।


खिड़कियों पर किसी की आहट से।


अपना साया भी डर गया होगा।।