मां की ममता

कविता


डॉ अशोक गुलशन


जो मुझ पर अपनी सारी ममता बरसाती थी,


वह प्यारी सी मां थी जो मुझको दुलराती थी


 


तिन्ना-तिन्ना कह बिस्तर पर खड़ा कराती थी,


पैंया-पैंया कह करके चलना सिखलाती थी


सुंदर हाथों से मेरा मल मूत्र बहाती थी,


वह प्यारी सी मां थी जो मुझको दुलराती थी


 


बाबू-बाबू कह करके वह पास बुलाती थी,


मुझे देख करके जो अपना दुख बिसराती थी


नया वस्त्र पहना करके जो मुझे घुमाती थी,


वह प्यारी सी मां थी जो मुझको दुलराती थी


 


ठंडक लगने पर सीने से जो चिपकाती थी,


मेरे खुश हो जाने पर जो खश हो जाती थी।


मुझे सुलाने की खातिर जो लोरी गाती थी,


वह प्यारी सी मां थी जो मुझको दुलराती थी


 


पास बिठाकर पुस्तक जो पढ़ना सिखलाती थी,


पकड़-पकड़ कर उंगली जो लिखना सिखलाती थी।


माथ चूम करके जो मुझको गले लगाती थी,


वह प्यारी सी मां थी जो मुझको दुलराती थी।