कविता
सत्यप्रकाश सक्सेना
तुम एक समानान्तर रेखा हो
जीवनभर अपने समान
अंतर को बनाये रखने के लिए
प्रयत्नशील रहते हो
तुम अपने स्वभाव से ही
अरिस्टोक्रेट हो
तथा स्वयं को
वी.आई.पी. समझते हो
किंतु मैं एक वक्र रेखा हूं
मेरे अंतर का मापदंड नहीं है
कहीं पर मैं अत्यंत निकट हूं
मेरे तुम्हारे स्वभाव के
इस अंतर का
आधार ही अलग है
लेकिन एक बात
बिल्कुल स्पष्ट है
जो तुम भी जानते हो
समानान्तर रेखाएं
कहीं पर भी नहीं मिलती
क्षितिज के उस पार भी नहीं
किंतु वक्र रेखाओं की
कहीं न कहीं पर मिलने की
सम्भावना अवश्य रहती है।