हम बहुत कायल हुए हैं

कविता


मनोज मधुर


हम बहुत कायल हुए हैं


आपके व्यवहार के


आँख को सपने दिखाये


प्यास को पानी ।


इस तरह होती रही


हर रोज़ मनमानी।


शब्द भर टपका दिए दो


होंठ से आभार के।


लाज को चूँघट दिखाया


पेट को थाली।


आप तो भरते रहे पर


हम हुए खाली।


पीठ पर कब तक सहें


चाबुक समय की मार के।


पाँव को बाधा दिखाई


हाथ को डण्डे।


दे दिए बैनर किसी ने


दे दिए झन्डे।


हो सके कब जीत के हम


हो सके कब हार के।