गजल
भानुमित्र
दोस्त मेरे दुश्मनों से कम नहीं।
घोंपने में छुरियों से कम नहीं।।
लोग करते हैं मुझे घायल मगर।
वे स्वयम भी घायलों से कम नहीं।
दर्द ही से गर्म होती है हवा।
ये उसाँसें आँधियों से कम नहीं।।
मेरी गजलों से यहाँ भी दरियाँ।
ये शहर भी पागलों से कम नहीं।।
जी हुजूरी क्यों करें इस उम्र में।
शेर मेरे शायरों से कम नहीं।।
बाल मन को मित्र मेरे सोचिए।
कागदों की कश्तियों से कम नहीं।।
धमेन्द्र गुप्त 'साहिलं'
वो कभी मेहरबाँ नहीं होता।
गर मेरा इत्मिहाँ नहीं होता।।
धूप में गर न शिद्दतें होतीं।
तो कहा सायबा नहीं होता।।
हम उसी रास्ते पे चलते हैं।
जिसपे कोई निशाँ नहीं होता।।
इस जमीं का वजूद क्या होता।
गर कहीं आसमाँ नहीं होता।।
राह जो पुरख़तर नहीं होती।
राह में कारवां नहीं होता।।
आज होती अगर हमारी माँ ।
घर हमारा मकाँ नहीं होता।।
सच्ची चाहत वो आग है 'साहिल'।
बुझ भी जाये धुआँ नहीं होता।।
राकेश भमर
बड़ा ही बेरहम है वक्त, सब से रूठ जायेगा.
जरा बचकर रहो ये प्यार सबसे रूठ जायेगा.
सुबह के फूल की मानिंद खिलकर मुस्कराये हैं
हमें डर है चमन ये भी खिजां में सूख जायेगा.
न जाने किस तरह चेहरे पे चेहरा वो लगाता है,
किसी दिन आइना शरमा गया, तो टूट जायेगा.
सभी को काट डालोगे अकेले क्या करोगे तुम,
हरा भी पेड़ मरुथल में, अकेले सूख जायेगा.
हवाओं के शहर में तुम उसे बदनाम कर दोगे,
उड़ा आंचल जो रुख से, दिल किसी का टूट जायेगा.
तुम्हारा चांद है लेकर उसे छत पे कभी आओ,
हंसीं ये चांद जाने कब 'भ्रमर' से रूठ जायेगा.
प्रद्मुन्न भल्ला
आस्था के दीप लेकर जब गुजारी जिंदगी।
प्यार से रोशन हुई है तब हमारी जिंदगी।।
हाथों में जब हाथ आया रास्ते खुद खुल गए।
सके हमने ये कहा कितनी हैं प्यारी जिंदगा।।
सिर्फ बातों से कहां बन पाई कोई बात है।
असल बातों पर करें तो बनती सारी जिंदगी।।
. आज इस मुशर्द को पाकर अर्थ बदले हैं सभी।
वरना अब तक जी रहे थे हम उधारी जिंदगी।।
रूह रोशन हो गई है नाद अनहद बज उठे।
अब सुहागन हो गई जो भी कुंवारी जिंदगी।।
दूसरों की राह के तुम चुनके काटे देख लो।
फिर लगेगी तुमको कामिल ये तुम्हारी जिंदगी।।
तेरे दर पर आके पूर्ण की बनी तकदीर यं।
खूब मालामाल है जो भी भिखारी जिंदगी।।