बातचीत
वरिष्ठ साहित्यकार, अध्येता, दार्शनिक, चिंतक अजातशत्रु जी से डॉ लता अग्रवाल की बातचीत।
मुम्बई उल्लासनगर में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे डॉ. अजातशत्रु जी से मिलना मेरे लिए सुखद संयोग है कारण वे मेरे ग्राम 'पलासनेर के ही रहने वाले हैं। इतने वर्ष मुम्बई जैसे महानगर में रहने के बाद भी उन्होंने अपने दिल में गाँव को सहेजे रखा और सेवा निवृत्ति के पश्चात पलासनेर को ही अपना ठिकाना चुना। यहाँ एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगी कि अजातशत्रु जी अपने दार्शनिक भाव के कारण अधिक जाने और माने जाते हैं। पहले अपने हरदा रहवास के दौरान उनसे प्राय : भेंट होती रहती थी। अगर कहूँ तो सर्व प्रथम 1989 में आपने ही मुझे प्रोत्साहित किया था, 'लता तुम साक्षात्कार विधा चुनो, इस पर कम काम हुआ है उनके कहने पर मेरा पहला साक्षात्कार हरदा के टी आई श्री अरुण खेमरिया जी से हुआ। खैर! पिछले दिनों मैं लघुकथा पर काफी पुराना संग्रह 1987 का पढ़ रही थी जिसमें मैंने लघुकथा पर उनका विद्वतापूर्ण आलेख पढ़ा। हैरानी मिश्रित खुशी हुई, भोपाल आने के बाद से उनसे मिलना मेरे लिए बेहद मुश्किल था किन्तु कुछ स्थितियां ऐसी निर्मित हुई कि मेरी उनसे पलासनेर में भेंट हो गई बस उसी लेख की चर्चा निकली जो अब तक उनके जहन से उतर चुका था। मैंने लघुकथा को लेकर उनसे कई प्रश्न किये, उत्तर देने का उनका अपना अंदाज है। वही अंदाज मैं आपसे साझा कर रही हूँ। (साक्षात्कार-4 अक्तूबर 2018 )
आप मुम्बई में अंग्रेजी रुझान कैसे हुआ ?
बहुत सीधी सी बात है कोई आदमी विदेशी भाषा पर कितना भी कमांड पाले सहजता और फ्लो, आत्मीयता जिसे कहते हैं वह मातृभाषा में ही आती है। मैं करेक्ट इंग्लिश लिख सकता हूं, किंतु करेक्ट अंग्रेजी लिखना बातचीत है, भाषा नहीं। भाषा में जब हम साहित्य लिखते हैं उसमें लेखन के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ होता है जैसे लचीलापन, कविता का पुट, मुहावरे का नयापन ...आदि तब जाकर साहित्य की सामग्री तैयार होती है। उदाहरण के तौर पर महिलाएं पूड़ी बनाती हैं वे उसमें मोअन डालती हैं, अब उसे आप अंग्रेजी में कैसे प्रस्तुत करोगे...? या किसी बेटी की विदाई का दृश्य है उस पूरे माहौल को पेंट करना है शब्दों के माध्यम से, कैसे करेंगे...? नहीं कर पाएंगे क्योंकि यह दृश्य हमारी भाषा का है, और हमारी भाषा में ही बेहतर तरीके से प्रस्तुत होगा। मदर टंग बहुत बड़ा क्षेत्र घेरती है, विदेशी भाषा सीमित होती है मुझे लगा जो मेरा अपना क्षेत्र है, पूरा देश ही मेरा क्षेत्र है उसी में लिखू। अपनी भाषा के लटके-झटके, लहजा वह अपनी भाषा में ही साकार होता है अभिव्यक्ति के प्रति ईमानदारी लेखक का प्रमुख गुण है मैंने उसका निर्वाह किया और हिंदी में लिख दिया। इसे मातृभाषा कहें तो ज्यादा बेहतर होगा। अंग्रेजी तो मेरी रोजी-रोटी की भाषा है और रोजी-रोटी की भाषा में ईमानदारी नहीं होती।
साहित्य की किन-किन विधाओं में आपका लेखन है? लेखन का माध्यम हिंदी है या अंग्रेजी?
मैंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन किया है। कई लेख लिखे हैं, फिलोसॉफिकल लेख भी हैं, कहानी, कविताएं लिखी हैं, यहां तक कि पोस्टकार्ड भी लिखे हैं, मैंने लगभग 1000 से ज्यादा पोस्टकार्ड लिखे हैं इनके साथ साथ ही लघुकथाएं भी लिखी है।
लघुकथा के प्रति आपकी रुचि कैसे हुई ? जानना चाहेंगे?
समय की मांग ने मुझसे लघुकथाएं लिखवाईं। आज जीवन को सर्वत्र संक्षिप्तता ने घेरा है और जरूरी भी है ...व्यस्तताएं बढ़ीं हैं यदि साहित्य का आनन्द लेना है तो हमें कम शब्दों में विधाओं को पिरोना होगा।
क्या आपको विश्वास था कि लघुकथा अपना प्रभुत्व बना पायेगी ?
क्यों नहीं, इसके आकार पर मत जाओ यह कहानी से अधिक ताकतवर होती है।
आप लघुकथा का इतिहास कब से देखते हैं ?
लघुकथा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना साहित्य क्योंकि जीवन में लघुकथा किसी न किसी रूप में सदैव व्याप्त रही है। जब कोई बड़ी कहानी नहीं लिख पाते थे तब उन्होंने छोटी-छोटी कहानी लिखना आरंभ किया तब लघुकथा नामक कोई विधा अस्तित्व में नहीं थी कहानीकार झटके से अपनी बात कह जाता था और वह झटका इतना बड़ा होता था कि पाठक का चेतना पटल उथल-पुथल हो जाता था।इसीलिए मैंने कहा लघुकथा बड़ी कहानी से ज्यादा ताकतवर होती है।
क्या आप भी पंचतंत्र और हितोपदेश को लघुकथा नहीं मानते?
हमें इतिहास की पौराणिक कथाओं को इससे तुलना नहीं करना चाहिए दोनों के अपने-अपने वजूद हैं। वह अपने समय की सशक्त कथाएं थी हम उसे चाहें जो नाम देंआज की लघुकथाएं आज के संदर्भ की हैं।
लघुकथा के विधान को लेकर आज तक कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई है, चाहे वह आकार की बात हो या काल खंड की हो? आप इसकी क्या वजह मानते हैं ?
और बन भी नहीं सकता, हम क्यों चाहते हैं कि कोई विधान बने और बनाया भी तो क्या बनाएंगे उसका कोई कांसेप्ट जब हमारे पास ही नहीं है। हर व्यक्ति बात को अपने ढंग से समझाएगा इसमें आप कुछ नहीं कर सकते।
लघुकथा में कौन सा तत्व आप महत्पूर्ण मानते हैं ?
लघुकथा का जो अंतिम वाक्य है उसमें पूरा टैलेंट होता है वहीं लघुकथा है। यह लेखक के कौशल पर निर्भर करता है। मैंने एक लघु कथा लिखी थी शब्द अक्षरश: तो याद नहीं मगर भाव कुछ इस तरह थे कि एक व्यक्ति फैक्ट्री में काम करने जाता है उसे रास्ते में ज्योतिष मिलता है जो कहता है तुम्हें बहुत पैसा मिलने वाला है। अंत में यह बताया है कि उस आदमी का फैक्ट्री में काम करते हुए हाथ कट जाता है जिसका उसे भारी मुआवजा मिलता है यह एक व्यंग्यात्मक लघुकथा थी।
आपने अब तक कितनी लघुकथाएं लिखीं... पाठकगण उनसे लाभान्वित होना चाहेंगे।
लघुकथाएं तो काफी लिखी हैं किन्तु इन्हें लिखे 36 से ज्यादा वर्ष हो गए हैं तुम्हें तो पता है मैं लिखकर छोड़ देता हूं इन्हें मैडल मान शोकेस में सजाकर नहीं रखता। अब मेरे पास तो है नहीं कहीं उपलब्ध हो तो कह नहीं सकता। लखनऊ की एक पत्रिका 'अर्निका' निकलती थी उसमें मेरी कई लघुकथाएं प्रकाशित हुई हैं फिर कमलेश्वर की सारिका में कुछ लघुकथाएं छपी थीं, नागपुर में एक 'नवभारत' नामक अखबार था जिसमें व्यंग कॉलम की डायरी के नाम से मेरा कॉलम चलता था उसमें मैंने कई लघु कथाएं लिखी हैं पता नहीं अस्तित्व में हैं भी या नहीं।
आपकी एक कविता की डायरी तो मुझे भी पलासनेर में घर में मिली थी जिसे मैंने सम्हालकर रखा था। क्या लघुकथा जीवन में घटित कोई घटना है? अथवा जीवन में लघुकथा कहां है ?
सवाल यहीं खड़ा होता है कि स्वयं जीवन में लघुकथा कहां है, जिसकी कॉपी हम साहित्य में करते हैं। मेरा मतलब है लघुकथा लिखना अलग बात है,लघुकथा को जीवन से उठाकर उसकी आंतरिक तीखेपन के साथ रखना अलग बात है। अधिकांश लघुकथाकार आकार की लघुता तथा अंत की तीव्रता को लघुकथा मान लेते हैं, ऐसी कथा पाठकों को झनझना तो सकती है मगर वह लघु कथा के दायरे में नहीं आती। कारण लघुकथा महज लघु घटना नहीं बल्कि घटना में छिपे व्यापक अर्थ को बयाँ करने की लेखिक घटना है। एक उदाहरण से बात स्पष्ट करना चाहंगा। 'मेरे गांव में एक कंगाल औरत मर गई उसने आत्महत्या की थी क्योंकि वह टी बी से परेशान थीलाश को करीब शाम के 5.00 बजे निकाला गया, सब जानते हैं कि शाम 5.00 बजे के बाद पोस्टमार्टम नहीं होता लिहाजा तय किया गया कि उसकी लाश को रात भर रखा जाए मैंने अपने मामा से पूछा,
'रात भर इस जनकिया के पास कौन बैठेगा?'
वह बोले, मैं बैलूंगा।'
मैंने कहा, 'अकेले बैठेंगे डर नहीं लगेगा?
वे बोले, डर तो जिन्दे आदमियों से लगता है मरे आदमियों से क्या डर रे।'
मेरी समझ में यह प्रसंग सीधा लघुकथा है। अंतिम वाक्य जब वह विस्फोट के साथ व्यंग पूर्ण प्रहार करता है, पूरे प्रसंग को साहित्यिक लघुकथा बना देता है। मगर एक बात और याद रखिए इस प्रसंग के मूल पात्र यानि मेरे मामा जी बिल्कुल देहाती थे। घटना भी एक गांव की है। इसका एक पात्र मैं तब 15 वर्ष का किशोर था कहने का तात्पर्य लघुकथा में यह भी देखना है कि पात्र का परिवेश और जीवन स्तर क्या है गांव की पृष्ठभूमि रखी है, इस दृष्टि से भाषा, शैली, शिल्प सभी कुछ गांव के अनुरूप होना चाहिए। यह चर्चा मैंने इसलिए की कि जब तक जीवन में व्याप्त लघु व्यंग्य को पर्सीव करने की क्षमता लघुकथाकार में नहीं है तब तक वह जुमलों की लघुकथा ही लिखेगा।
वाकई सम्पूर्ण प्रसंग ऐसा ही लग रहा है मानो किसी ने लघुकथा रची हो, जिसके प्रत्येक शब्द ब्रिक की भांति जमे हुए हों। क्या इस तरह के किस्से भी लघुकथा हो सकते हैं ?
हां! कभी-कभी गांव का गंवई, कोई निरक्षर देहाती सहज नाटकीय बोध से हैमेटिक अंदाज में झटके से कोई बात कहता है तो वह भी लघुकथा का रूप ले लेती है। एक मजाकिया किस्सा सबको याद होगा जो शायद कहीं लघुकथा के रूप में प्रकाशित भी हुआ है। गांव में बहुत चर्चित हुआ था एक देहातिन के साथ बलात्कार हो गया, खबर मिलने पर थानेदार साहब आए कोने में ले जाकर उन्होंने उसका स्टेटमेंट लिया फिर एक-एक कर सिपाहियों ने स्टेटमेंट लिया। लड़की कोर्ट में गई तो मजिस्ट्रेट ने प्राइवेट में ले जाकर स्टेटमेंट लेना चाहा इस पर लड़की ने कहा 'हुजूर! स्टेटमेंट तो सूज गया है।' मेरा ख्याल है कि यह किस्सा किसी लघुकथा का गरिमामय रूप है। इसमें स्टेटमेंट शब्द जिस अर्थ की सृष्टि कर्ता है वह खलील जिब्रान की व्यंजना को भी पार कर जाता है। आकस्मिक अंत ही लघुकथा का कौमार्य और सुहाग है। यह कथाकार को देखना चाहिए कि वह कथा को संपूर्णता व्यंजना को तीखा और उल्कापात की तरह चुटीला बनाये। आकस्मिक अंत ही लघुकथा का कौमार्य और सुहाग है अगर यह झटका लघुकथा में नहीं है तो सारी संपूर्णता के बाद भी लघुकथा अधूरी है जैसे खून हो और खून में नमक ना हो।
इस दृष्टि से आप लघुकथा को किन शब्दों में परिभाषित करेंगे ?
परिभाषा इस बिंदु के आसपास बनती है कि अच्छी लघुकथा और बुरी लघुकथा के बीच स्वीकार्य लघुकथा वह है जो नाटकीय ढंग से झटकेदार अंत करती हुई पाठक पर शिशिर की बिजली की तरह गिरती है। कहना ना होगा कि एक तरह से लघुकथा का पूर्ण और उपलब्ध अंत ही सबसे पहले लेखक के दिमाग में आता है फिर उस तेजाबी अंत को जस्टिफाई करने के लिए वह शेष कथा बुनता है।
लघुकथा लेखन के दौरान लेखक किन बातों से बचे ताकि लघुकथा की गरिमा बनी रहे ?
आज जमाना जिस रूप में हमारे सामने है उसे देखते हुए सीधे और तीखे कमेंट की जरूरत है, अगर आप ने विद्रोह के विद्रूप को समझाया तो व्यंग गया, अगर आपने अटैक को खींचा तो अपील भोथरी हो गई, लघुकथा यानी उल्कापात ।
आपके अनुसार लघुकथा की कसौटी क्या है?
मेरे हिसाब से सार्थक लघुकथा जो पाठकों में एकदम से चुप्पी डाल दे वह लघुकथा एक्यूरेट है। क्योंकि एक्यूरेट यानि मौन या चुप्पी होती है अगर आपको कोई बात परिभाषित करनी है तो चुप्पी को तोड़ना होगा और चुप्पी को तोड़ने का मतलब है आप एक्यूरेट परिभाषा से दूर जा रहे हैं अतः सटीक लघुकथा वह है जिसे एक बेवकूफ बच्चा भी जानता है पर जो किसी भी चीज की तरह 'अल्टीमेट' बिंदु तक परिभाषित नहीं की जा सकती हमारा बोध ही विषय की सत्यता का प्रमाण है। भाषा स्वयं बोध नहीं होती इस दृष्टि से परसाई जी की व्यंग्य कथा का जिक्र करना चाहूंगा, नाम ठीक से स्मरण नहीं आ रहा। दो विजातीय युवक-युवती एक-दूसरे से प्यार करते हैं पर दोनों के मां बाप कट्टरपंथी हैं। लड़की के बाप को समझाया जाता है कि वह लड़की को शादी कर लेने दे। यह इशारा भी किया जाता है कि वह लड़के को पति मानकर हमबिस्तर भी हो चुकी होगी इस पर बाप कहता है- 'मैं शादी हरगिज नहीं होने दूंगा। रहा व्यभिचार? तो व्यभिचार से जाति नहीं जाती, इंटर कास्ट मैरिज से जाती है। यह कथा भी उच्च कोटि की लघुकथा है और इसकी जान है 'अंतिम वाक्य'। अधिकांश लोग कथा लेखक इस पर ध्यान नहीं रखते। लघु कथा में आकार की लघुता ध्वनित नहीं है, बल्कि आकार की लघुता के कारण प्रहार की तीव्रता व्यंजित है, जैसे गमले के गुलाब के पीछे से कोबरा डस जाए।
क्या जीवन के बाहर लघुकथा की कल्पना की जा सकती है ?
जीवन के बाहर साहित्य की कल्पना भाषा की लिमिट होती है-हम अनुभव को भाषा देते हैं, अनुभव की अपनी कोई भाषा नहीं होती, भाषा में फंसकर हम उलझ जाते हैं। अनुभव भाषा के बिना ही होते हैं हम उसे नाम दे देते हैं-जैसे चाय पीने का अनुभव आपको होता है जिसे आप मीठा नाम देते हैं। जीवन में कई वाकयात होते हैं जिन्हें 10 पंक्तियों में भी कहा जा सकता है और 10 पन्नों में भी, एक अपने जीवन से जुड़ी घटना सुनाता हूं, खंडवा में मैं एक महिला 'शीला मिश्रा' को पढ़ाने जाता थाउसके पति ने कोई और स्त्री रख ली अतः शीला मिश्रा चाहती थी कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाए और पति से छुटकारा पा ले। एक दिन मैंने सुना वह पति से कह रही थी सुनो मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी कि वह आपको अगले जन्म में फिर पुरुष ही बनाएं अर्थात उसने इसी के दर्द को इतनी शिद्दत से झेला है कि वह नहीं चाहती है कि फिर कोई स्त्री बने चाहे वह उसका शत्रु ही क्यों ना हो।
क्या अंग्रेजी में भी शार्ट स्टोरी लिखी जाती हैं ?
अंग्रेजी में शार्ट स्टोरी लिखी जाती हैं, वह ज्यादा पॉइंटेड होती हैं, नुकीली होती हैं, ज्यादा ऑनेस्टी से लिखी जाती है। हमारे देश में इतना पाखंड है कि हम ना सीरियस टाइप के लोग हैं ना ही हमारा लेखक सीरियस है हमारी राइटिंग भी गंभीर नहीं है वर्ल्ड लेवल पर हमारे पास क्या है बताइए...? प्रेमचंद और परसाई जैसे एक दो लोगों को छोड़ दें तो...? आज आवश्यकता है कि हमें अपना मुहावरा खुद खोजना चाहिए किसी किताब को कोड करने की बजाय स्वयं अपना मुहावरा तैयार करने में यकीन रखें।