सदाशिव कौतुक

कविता


नीवें


जब नीवें खोखली/और


दीवारें कमजोर होने लगती हैं


समाज में संस्कारों की


तब...


वृद्धाश्रमों की नीवें और दीवारें


अधिक मजबूत होने लगती हैं


रिश्तों में घुसपैठ करता पैसा और स्वार्थ


करने लगता है संस्कारों का विध्वंस


ऐसा तब होता है जब....


विस्मृत कर दिया जाता है अतीत


और अधिक ऊंची उड़ान से


ओझल हो जाती है जमीन


मेरी राय में


उड़ान इतनी ऊंची होनी चाहिये


जिस ऊंचाई से देखा जा सके


जमीन का तिनका-तिनका


और जमीन से बना रहे गहरा रिश्ता


वृद्धाश्रम की दीवारों में चुनी हुई


ईंट और पत्थर


बोलते नहीं तो क्या हुआ


दीवारों के दिलों में


अनगिनत कहानियों के पात्र


आंसू बहाते रहते हैं


कई पात्र पछताते हैं कि


कुपुत्र पैदा करके क्यों


बढ़ा दिया बोझ धरती पर


यह अपराध बोध


प्रायश्चित करवाता रहता है


वृद्धाश्रम में वृद्धों को


मृत्यु तक।


 


मिट्टी के ढेले जैसा सपना


उस औरत को नींद नहीं आती


डरी-सहमी बेचैन


मिट्टी के ढेले जैसा है


बनता बिगड़ता उसका सपना


जनता की सेवा में तैनात खडा जवान


नक्सलवाद का सामना करता


कहा नहीं जा सकता


कब उस मिट्टी के ढेले पर


खून का फव्वारा आ जाए


और जमीं से बिखर कर वह ढेला


मिट्टी में मिल जाए


डरी हुई बेचैन वह औरत


पत्नी भी हो सकती है


हो सकती है मां भी/बहन भी


उस रक्षक नौजवान की।