लड़कियां और लड़कियां

रमेश दवे


मिसेस फातिमा जमशेदजी का एक संस्थान है जिसका नाम है 'लर्न एंड-डू नॉलेज इंस्टीट्यूट' अर्थात 'लड़की'। इस संस्थान में लड़कियां यानी सिर्फ लड़कियों को ही प्रवेश है। ये लड़कियां वे लड़कियां हैं जो बलात्कार-ग्रस्त और समाज या परिवार से त्रस्त हैं, या ऐसी लड़कियां हैं जिन्हें समाज नाजायज संतान मानता है, या वे लड़कियां हैं जो हर प्रकार के अपराध के विरुद्ध लड़ना, अपने अस्तित्व, अपनी अस्मत और अपने जीवन की स्वयं रक्षा करना एवं अन्य की रक्षा के लिए सदैव तत्पर और सक्रिय रहना चाहती हैं। मिसेस फातिमा जमशेद जी का यह संस्थान एक प्रकार का अभियान, आंदोलन या क्रांति का संस्थान है। वह हर लड़की में अपने लिए और अपने जैसी असंख्य लड़कियों को लड़ने की हिम्मत, साहस और प्रेरणा देने का भी संस्थान है।


मिसेस फातिमा का वॉच वर्ड या नारा है-रोओ मत' चिल्लाओ-डरो नहीं डराओ' वे चाहती हैं लड़कियों की चीख चिल्लाहट के शोर से समाज के कान फट जाएं, सत्ताओं की छाती दरक जाए और व्यवस्था की विलासवादी नीतियां थर्रा उठेमिसेस फातिमा का संस्थान यह भी चाहता है कि उसकी हर लड़की जुल्म के विरुद्ध विद्रोह बने, अपराध के विरुद्ध लड़ने की शक्ति बने और समाज जिन लड़कियों को उपेक्षित अपमानित करता है, उस समाज की चेतना में आग बन कर फैल जाए। मिसेस फातिमा यह भी मानती हैं कि लड़की को लड़ना चाहिए क्योंकि 165• प्रेरणा समकालीन लेखन के लिए लड़की शब्द में 'लड़' निहित है।


समाज कितना भी प्रदूषित, अपराधी या अराजक हो जाए, इन्हीं दुर्गुणों के विरुद्ध तो कोई ना कोई सत्पुरुष प्रकट होता है जो समाज को जाग्रत करता है, समाज में स्पंदन उत्पन्न करता है और यदि अन्याय अत्याचार का आतंक व्याप्त होता है तो, समाज की सामूहिक शक्ति का आह्वान करता है। गांधी ने अंग्रेजी-साम्राज्यवाद के विरुद्ध यही तो किया था। गांधी अहिंसा की वाणी का अस्त्र लेकर निकले थे तो क्रांतिकारी क्रांति का शस्त्र लेकर। गांधी एक विचार बनकर आए और उस विचार की शक्ति से तत्कालीन समाज को खड़ाकर दिया। गांधी तो कहते थे मैंने हिंदुस्तान को जितनी भी चीजें दी हैं उनमें से सर्वश्रेष्ठ चीज शिक्षा है। मिसेस फातिमा भी मानती हैं कि नारी अगर शिक्षा द्वारा मानसिक और भौतिक रूप से शक्तिशाली बना दी जाये तो वह अन्याय-अत्याचार के विरुद्ध लड़ सकती है।


मिसेस फातिमा का संस्थान एक प्रकार से मानवीय करुणा और संवेदना का संस्थान बन गया है जिस पर उन्होंने अपने आपको तन, मन, धन से निछावर कर दिया है। वहां जो भी लड़कियां हैं वे प्रतिदिन आंसू पीती हैं और आंसू ही जीती हैं, मिसेस फातिमा उनके जख्म पर अपने प्यार और मर्म का मरहम तो लगाती हैं लेकिन भोगी गई पीड़ा की स्मृति इतनी जल्दी क्षीण कहां होती है।


लड़कियां दो वर्ष से सोलह साल तक की हैं। कुछ लड़कियां अट्ठारह से पच्चीस साल तक की भी हैं। वे सभी अपराधी-समूहों और व्यक्तियों की भोगी वासना की शिकार रही हैं। कुछ लड़कियां अपहरण के बाद अपनी सुध-बुध खो चुकी हैं, वे नहीं जानती कि उन्हें कौन लाया। उनके साथ रहने वाली समस्त लड़कियां बलात्कार की क्रूरता भोग कर सदमें से सुन्न हो गई हैं। यौनाचार से ग्रस्त ये लड़कियां ऐसे नृशंस, अमानवीय और क्रूर समाज की शिकार हैं जिनमें अपराधी वे तो हैं ही जो अपराध को व्यवसाय बना चुके हैं साथ ही परिवार के भाई, पिता, सास, ससुर, देवर, जेठ, साले-बहनोई आदि वे सभी रिश्तेदार भी हैं जिनकी वासना के आगे रक्त का संबंध तक निरर्थक हो गया और जो पशुता से भी अधिक भयावह पशु हैं। इन नर पशुओं की त्वरित सजा क्या? कौन सा कानून है हमारी भारतीय दंड संहिता में जो अपराध होते ही इन्हें पकड़ कर स्पाट पर ही फांसी दे देने का प्रावधान रखता है ? मिसेस फातिमा मानती हैं, पुलिस मात्र जांच एजेंसी है, सजा एजेंसी नहीं और वह कर्त्तव्य और जांच का सौदा कर लेती है कई बार! कितने पुलिस वाले हैं जो वरदी का अधिकार अन्याय को बेच नहीं देते? जब कर्त्तव्य-बोध खरीदी और बिक्री बन जाए तो न्याय कहां मिलेगा, अपराध कैसे मिटेंगे।


जहां तक अदालतों का प्रश्न है उनके पास तो हमेशा मुकदमों का एक महापिंड रखा रहता है शीघ्र या त्वरित न्याय तो न कानून दे पाता है, न अदालत औरजो जनता आक्रोशित उत्तेजित होकर कोई कदम उठा लेती है वह कानून हाथ में लेने की खुद भी अपराधी कहलाने लगती है। ऐसे में लड़कियां जितनी भी हैं वे प्रतिदिन हविश की शिकार होती जाती हैं और मिसेस फातिमा जैसी प्रखर, मुखर, साहसी स्त्रियां हैं ही कितनी जो इस अपराध-दानव का मुकाबला कर सके?


 मिसेस फातिमा जमशेद जी अपने संस्थान की प्रत्येक लड़की से सुबह, दोपहर, शाम और रात को सोने के पहले प्रतिदिन मिलती हैं। वे सुबह-शाम कोई प्रार्थना कभी भी नहीं करतीं। उनका विश्वास यह है कि प्रार्थनाओं से कुछ होता ही नहीं। गांधी तो प्रतिदिन सुबह-शाम प्रार्थना करते थे मगर उन्हें जब खुलेआम गोली मार दी तो वह गांधी की हत्या न होकर प्रार्थना की हत्या थी और प्रार्थना की संपूर्ण नैतिकता एवं पवित्रता की हत्या थी। समाज की चेतना के लिए अब प्रार्थना या चिंता के बजाए चुनौती से खड़ा होना होगा। ये जो लड़कियां हैं, और लड़कियां जो आ रही हैं, उन्हें आंसुओं की प्रार्थना से मुक्तकर आक्रोश और विद्रोह की प्रार्थना से तैयार करना होगा। लड़की खुद लड़ेगी, खुद अपनी अदालत और अपना न्याय बनेगी, खुद क्रांति बनेगी। वह ईश्वर की प्रार्थना या शहीद स्त्रियों की शौर्य-गाथा गाने वाली गायिका न बनाकर ऐसी नायिका बनेगी जो अपराधी खलनायकों का जीना हराम कर देगी। कितने क्रांतिकारी और कुरीतिग्रस्त समाज के विरुद्ध विद्रोह से भरी-भरी है मिसेस फातिमा? क्या वह सब संभव है जो वे करना चाहती हैं? पुलिस, कानून, अदालत, सत्ता के दुर्गम दुर्ग को ध्वस्त कर पाएगी मिसेस फातिमा? क्या अपराध के खलनायकों के विरुद्ध अपने बल-नायक की एक प्रबल जन-सेना रच पाएगी मिसेस फातिमा? अगर ये सब प्रश्न हैं तो इनके उत्तर भी तो बनना होगा मिसेस फातिमा और उनके संस्थान को?


मिसेस फातिमा प्रतिदिन अपनी लड़कियों के आओ कुछ गाएं और दो पंक्तियां स्वयं गाती हैं


हम लड़की नहीं, आग हैं अब तो


यह आग फैलने वाली है,


अपराध और अपराधी को


यह आग जलाने वाली है।।


सभी लड़कियां गाने लगी हैं, कुछ भावुक उत्तेजना के साथ नाचने लगती हैंहर लड़की गाते-गाते कहती है


मैं भी आग, तू भी आग


सारे जुल्म जलाएंगें


लड़की को लड़की मत समझो


हम लडकर अब दिखलाएंगीं।।


मिसेस फातिमा गीत, नृत्य और तरह-तरह की मनोरंजक गतिविधियों से इन लड़कियों को मनोवैज्ञानिक ढंग से यह जताना चाहती थीं कि वे अपने बीते वक्त की यादों में न जिएं, न अपने वर्तमान को कोसती रहें बल्कि वर्तमान को अपने मनमाफिक बनाएं और उज्ज्वल भविष्य के स्वप्न देखें। यह संस्थान आपके आंसुओं के लिए नहीं है, यह तो आंसू को आग का दरिया बनाने के लिए है। इसलिए यहां खूब पढ़ो, खूब लिखो, खूब खेलो और खूब काम करो। आपका संघर्ष ही अपका उत्कर्ष बनेगा आपकी भावना ही आपकी संभावना बनेगी और आपका कर्म ही आपका सच्चा धर्म होगा।


'लड़की' संस्थान में लड़कियों ने अपनी-अपनी रुचि के काम चुन लिए हैं। एक समूह बगीचा लगाने, पेड़-पौधों की देख रेख और स्वच्छता के काम में लग गया है। दूसरा समूह पानी का काम कर रहा है। वे शुद्ध-जल अभियान से जुड़ी हैं। संस्थान में एक बड़ा-सा आर.ओ. प्लांट है जिससे वे शुद्ध पानी का उत्पादन कर कंपनियों को सप्लाय कर रही हैं। तीसरा समूह किचन कार्यक्रम से जुड़ा है-जहां न केवल संस्थान के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी खाना बनता है जो खाना मंगवाते हैं। उनका टिफिन-सेंटर है जो अपनी क्वालिटी के लिए इतना मशहूर है कि नगर के लगभग एक हजार ग्राहक उनका दोनों टाइम का टिफिन मंगवाते हैं। चौथा समूह सिलाई और डिजाइनर कपड़े का काम करता है। उन्हें दुकानदार कच्चा माल सप्लाय करते हैं और वे बच्चों से बूढों तक के लिए हर मौसम के कपड़े सीकर देती हैं। पांचवां समूह है जो लड़कियों के जिमनासियम, जूडो-कराटे और शस्त्र चलाने की साहसी गतिविधियों और योग से जुड़ा है। यहां कुछ महिला एवं पुरुष शिक्षक मिलकर प्रशिक्षण देते हैं। एक समूह स्वास्थ्य से संबद्ध है-उन्हें स्वच्छता, बीमार की सेवा, नर्सिंग, दवाई-इंजेक्शन आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। वे लड़कियों को किसी अस्पताल में नहीं भेजतीं बल्कि जिन्हें इलाज, एक्सरसाइज आदि की जरूरत है वे स्वयं यहां आकर अपना इलाज करवा लेते हैं।


मिसेस फातिमा के संस्थान की एक खासियत यह है कि उन्होंने संस्थान के दायित्व तो लड़कियों को सौंप ही रखे हैं लेकिन लड़कियों को 'लर्न एण्ड डू' का नॉलेज और स्किल देने के लिए अनेक पुरुषों यहां तक कि यंग-लड़कों की नि:शुल्क सेवा भी इस चुनौती के साथ ले रखी है कि वहां स्त्री या लड़की का ही मन ना बदले बल्कि लड़कों-पुरुषों की मानसिकता भी बदले।


एक दिन संस्थान में एक घटना घटी। एक यंग लड़का जो जूडो-कराटे सिखाता था, वह एक लड़की का पीछा करते हुए उस लड़की के कमरे में घुस गयाअन्य लड़कियों ने उसे घुसते देख मिसेस फातिमा को सूचित किया। मिसेस फातिमा ने हर लड़की के बिस्तर के नीचे एक-एक लाठी रखवा दी थी। लड़का घुसा तो लड़की न तो चिल्लाई, न डरी, न लाठी उठाई बल्कि उसे सम्मान के साथ अपनी कुर्सी पर बिठाया। लड़का चकित कि बजाए उसे भगाने, चिल्लाने, पीटने के उसे बिठाया जा रहा है।


लड़की ने पूछा आप क्यों आए यहां? क्या चाहते हैं? आपको मालूम है यह केवल संस्थान नहीं बल्कि एक ऐसी प्रयोगशाला है जिसमें आग के केमिकल्स रखे हुए हैं। आपको जलाकर भस्म किया जा सकता है। हम पुलिस-रिपोर्ट, अदालत और कानून की पोथियों के बजाए अपनी शक्ति की पुलिस और अपने मन की अदालत से निर्णय लेती और देती हैं।


लड़का जवान था। व्यक्तित्व भी सुन्दर था। जूडो कराटे सिखाता तो जरूर था, मगर लड़की के शब्द सुनते ही उसके जूडो-कराटे का हुनर धराशायी हो गया। लड़की सुन्दर थी, जवान थी मगर सुन्दरता उसका साहस थी और जवानी उसकी शक्ति। लड़का इतना डरा कि पसीना-पसीना हो गया।


अब कई अन्य लड़कियों के साथ आकर मिसेस फातिमा ने लड़के को घेर लिया। लड़कियों के हाथों में लाठियां थी। फातिमा ने कहा हमें इसे पीटना नहीं है। इससे बात करके पूछना है, यह चाहता क्या है। प्रश्न शुरू हुए-लड़का कांपते-कांपते जवाब देने लगा। फातिमा बोली-जूडो-कराटे सिखा रहे हो और इतने डरे-डरे कांप क्यों रहे हो? क्या यही है तुम्हारे जूडो-कराटे का साहस! साफ-साफ बोलो-चाहते क्या हो?


जिस लड़की के कमरे में घुसा था वह बीस बरस के यौवन का उभार लिए स्वयं भी कुछ-कुछ युवक के प्रति आकर्षित थी मगर अपने साथ घटी घटना को यादकर उसका पुरुष के प्रति विश्वास भंग हो गया था।


मिसेस फातिमा ने लडके से कहा-जानते हो यह लड़की सामूहिक बलात्कार की शिकार रही है। जानते हो आज तक इस लड़की की तरफ किसी ने आंख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं की। जानते हो मेरे एक इशारे पर ये लड़कियां तुम्हारे इश्क का जूडो-कराटे भुला कर रख देंगी।


अब लड़का थोड़ा संभला-कहने लगा, मेम मैं इस लड़की का अतीत जानता हूं- अतीत तो व्यतीत हो गयामैं इस लड़की का वर्तमान देख रहा हूं और न केवल इसका बल्कि आपकी सभी लड़कियों का वर्तमान देख रहा हूं। इनका वर्तमान देख मैं सम्मान से इनको सलाम करता है। जहां तक भविष्य का प्रश्न है, मैं इतना ही कहूंगा कि वर्तमान तो अतीत में बदलता जाता है, मैं चाहता हूं मैं इस लड़की का भविष्य बनूं!


अरे वाह तुम तो ऐसा लगता है जैसे कोई विचारक या कवि हो! बताओ कैसे चाहते हो भविष्य बनना?


लड़के ने कहा अगर मैं इनके कमरे में घुसा और मैं भी एक बलात्कार करता तो एक और अपराध घटित होता। बलात्कारी-पुरुष भले ही कानूनी सजा पा जाए मगर लड़की पर समाज जो दाग लगा देता है वह तो बलात्कार से भी ज्यादा घृणित है। आपका अगर यह संस्थान लड़की को लड़ना सिखाता है तो मैं भी एक एन.जी.ओ. से जुड़ा हूं जो बलात्कार-ग्रस्त लड़कियों के सम्मान की लड़ाई लड़ता है और अभी तक हमारे एनजीओ ने ऐसी लड़कियों को आत्म-ग्लानि अपराध बोध एवं सामाजिक कलंक से मुक्त कर उनकी रजिस्टर्ड शादी करवाई है और एक भी शादी आज तक टूटी नहीं है बल्कि शादी के बाद वे लड़कियां भी हमारे इस अभियान के साथ हैं।


वाह, वाह अब बताओ तुम इस लड़की के कमरे में क्यों घुसे?


एक ही इरादा था, है और रहेगा-शादी करूंगा-दूसरा भविष्य बनूंगा और आगे क्या कहूं।